________________
३–देव कुरू व उत्तर कुरू में दस द्रह हैं। अथवा दूसरी मान्यता से २० द्रह हैं। इनमें देवियों के निवासभूत कमलों पादि का सम्पूर्ण कथन पनद्रहवन जानना । ये द्रव नवी के पोता व निकास के तारों से संयुक्त हैं।
४-सुमेरु पर्वत के नन्दन, सौमनस व पाण्डक वन में १६, १६ पुष्करिणी हैं जिनमें सपरिवार सौधर्म व ऐशानेन्द्र क्रीड़ा करते हैं । तहां मध्य में इन्द्र का आसन है। उसकी चारों दिशाओं में चार आसन लोकपालों के हैं, दक्षिण में एक प्रासन प्रतीन्द्र का, अग्रभाग में आठ प्रासन अग्रम हिषियों के, वायव्य और ईशान दिशा में ८४,००,००० आसन सामानिक देवों के, आग्नेय दिशा में १२,००,००० पासन अभ्यन्तर पारिषदों के १४,००,००० पासन मध्यम पारिषदों के, नैऋत्य दिशा में १६,००,००० आसन बाह्य पारिषदों के, तथा उसी दिशा में ३३ प्रासन त्रास्त्रिशों के, पश्चिम में छह मासन महत्तरों के और एक प्रासन महतरिका का है। मूल मध्य सिंहासन के चारों दिशाओं में ४००० आसन अंगरक्षकों के हैं। (इस प्रकार कुल सन १२६८४०५४ होते हैं।
मला
पन्न द्रह
पन्द्र
ह
संजय कूट G
YANESH HEALTETभी मसपाNET
PHATIT मनकूट
- 2000 कमान सामना ../
..
की निकट
Ge-
'
PA. भयारिया
'
२.
song
+
RashifaAPURAM.IN
2
सागरिक
.
मस
४
गंस
-sunyMOOOS HAYARI POTO
:
NROOPS बाँRPORA
:
...
or
:..
.-B
.
शीरगटीकूट
दिवी
देवी
OEN.
नम
:
।
83Care
CARNAMAALAN
if B
E
est
AR
8
.
ERandred
.
.
P
शि
रुबक कूट
..:..
awcARISM
..
.
कमनट
MOSAIRARM
"
-
Eenagp यम बोरिंग
आश्वयं वादिक्षा
% viykH मगरवन्ट,AMSANKRArto
--
MAझामसाजन
ne
PARTHANAMRATIME AMANMAMAKARIA
यहां पर अनेक प्रकार के वर्षों से युक्त महीतन, शिलातल, उपपाद, वातु, शक्कर, शीशा, चांदी, सुवर्ण, इनके उत्पत्ति स्थान, वज्र तथा अयस् (लोहा) तारा (पु) (रांगा), सस्यक (मरिणशिला, हिंगुन (सिंगरफ), हरिताल, अंजन, प्रवाल (मुंगा), गोमेदक (मरिण-विशेष), रुचक कदंब (धातु विशेष) ताम्र वालुका (लाल रेत), स्फटिक मणि, जलकान्त मणि, सूर्यकान्त मणि, चन्द्र प्रभ (चन्द्रकान्त मणि), वयं मणि, मेह चन्द्राश्म, लोहितांक (लोहितान), बंबय (पप्नक ?), बगमोच (?), और सारंग इत्यादि विविध वर्ण वाली धातुएं हैं। इसलिये इस पृथ्यी का चित्रा इस नाम से वर्णन किया गया है ।