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२ पर्वतों का प्रमाण
नाम
गणना
विवरण
मेरु
जम्बूद्वीप के बीचों-बीच ।
हिमवान् आदि ।
कुलाचल विजया
प्रत्येक कर्मभूमि में एक ।
वृषभगिरि
नाभिगिरी
वक्षार
गजदन्त
प्रत्येक कर्मभूमि के उत्तर मध्य म्लेच्छ खण्ड में एक । हैमवत, हरि, रम्यक व हैरण्यवत क्षेत्रों के बीचों-बीच । पूर्व व अपर बिदेह के उत्तर व दक्षिण में चार-चार । मेरु की चारों विदिशाओं में। विदेह क्षेत्र के भद्रशालवन में व दोनों करुषों में सीसा व सीतोदा नदी के दोनों तटों पर । दो कुरुषों में सीता व सीतोदा के दोनों तटों पर। दोनों कुरुषों में पांच-पांच द्रहों के दोनों पार्श्व भागों में दस-दस।
दिग्गजेन्द्र
यमक
कांचनगिरि
११
पृथ्वी के पाश्र्व भाग में सोलहू. मध्य लोक के पाश्च भाग में बारह, ब्रह्मास्त्र के पार्श्व भाग में सोलह, और सिद्ध लोक के, पार्श्व भाग में बारह योजना के वाहल्य रूप वातवलय की अपेक्षा दोनों ही पाच भागों में स्थित वात क्षेत्र को जगप्रतर प्रमाए से करने पर एक सौ चौंसठ योजन कम अझरह योजना के तीन सौ तेतालीसवें भाग बाहल्य प्रमाण होता है।
१३४७४१४४२-२५४.१७६३६४४६ गुनः सातवे भाग से अधिक छह राजु मूल में विस्तार रूप, छह राजु उत्सेध रूप, मुग्म में एक राजु विस्तार रूप और सोलह, प्रारह योजन बाहल्य रूप (सातवीं पृथ्वी और मध्य लोक के पाश्वं भाग में) वातवलय की अपेक्षा दोनों ही पाव भागों में स्थित वात क्षेत्र को जगातर प्रमाण गे करने पर बयालिस सौ पोजन के तीन सौ तेतानीमवें भाग बाहल्य प्रमाण जगप्रतर होता है। 3+:3xx१४४६:४२००X४६ ४२०००x४६
७X४६ ३४३ अान्तर एक, पाँच व एक राजु तिष्कम रूप (कम से मध्य' लोक, ब्रह्म स्वर्ग और सिद्ध क्षेत्र के पावभाग में सात राजू उत्सेध रूप, और क्रममामध्य लोक, ब्रह्म स्वर्ग एवं सिद्ध लोक के पार भागों में स्थित वात क्षेत्र को जगप्रतर प्रमाण से करने पर पांच सौ अठासी भोजन के एक कम पचासवें अर्थात उनचासवें भाए बाहय प्रमाण जगप्रसर होता है।
५-१९४७४२४१४ :५८८ । ४६x४६ ऊपर एक राजु विस्तार रूप, सात राजु प्रायमरूप और कुछ एक योजन बाहल्य रूप पातबलय की अपेक्षा स्थित यात क्षेत्र को