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________________ पुनः सन 1953 क्षुल्लिका दीका लयः सन 1956 में वैशाच प्रश्णा दूज के दिन जन्मपूज्य चाविचकवती आचारी भी शालिगर महाराज के प्रथम पट्टाधीश आचार्यश्री वीरसागर "ETTE से आर्यिका दीक्षा धारण कर समाज को प्रमानवारि गम्मि लगानीमख जैरा सर्वोच्च पदों को सुशोभित किया है। हिन्दी, संस्कृत, प्राकृत, कन्नड ऑर मराठी आदि भाषाओं में सरल साहित्य रचना आपके जीवन का प्रमुख अंग रहा है. इसीलिए 250 ग्रंथों की लेखिका बनकर आज आप समाज की सर्वोच्च लेखिका के रूप में मान्य है। वर्तमान में षण्डागम ग्रंथ (लगभग 2200 वर्ष पूर्व लिखें सर्वप्रथम सूत्र गंध) पर आप संस्कृत टीका लिख रही हैं, जिसका प्रथम भाग (हिन्दी सहित) प्रकाशित होकर सभी के समक्ष आ चुका है। लगभग 2000 पृष्ठों में षट्खण्डागम की 12 पुस्तकों के लगभग 5500 सूत्रों की टीका लिखी जा चुकी है एवं 13वीं पुस्तक की टीका का लेखनकार्य द्रुतगति से चल रहा है। भगवान जिनेन्द्र से यह प्रार्थना है कि कलियुग की यह सरस्वती माता युग-युग तक जीवन्त रहे ताकि सचे ज्ञान का अमृत संसार को प्राप्त होता रहे। इनकी सम्प्रेरणा से विश्व को पुनः अतिप्राचीन महापुरुष भगवान ऋषभदेव एवं महावीर स्वामी के सिद्धान्तों से परिचित होने का अवसर प्राप्त हुआ है अतः उन अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह एवं अनेकान्त के सिद्धान्त जन-जन तक पहुँचाकर उन्हें सर्वव्यापी बनाना चाहिए। पूज्य माताजी का सर्योदयी संदेश है कि मानव जीयन की श्रृंखला में क्रूरता को हटाकर प्राणीमात्र के प्रति मैत्रीभाव धारण करें, सदाचारी और शाकाहारी बनें, प्रत्येक प्राणी को निर्भय होकर जीवन जीने का अधिकार प्रदान करें जिससे मानवीय संस्कृति पुनः जीवंत होकर सृष्टि की प्राकृतिक व्यवस्था को वास्तविक स्वरूप प्रदान कर सके। प्रत्येक सम्प्रदाय के साथ सौहाद्र की भावना से सम्प्रदाय को धर्म का गाना पहनाकर पारस्परिक संघर्या को न उत्पन्न कर भारतीय संविधान को गौरव प्रदान करते हुए अपने देश के गुलदस्ते की सुगंधि दुनिया में प्रसारित करना चाहिए। -कर्मयोगी अ. रवीन्द्र कुमार जैन (अध्यक्ष-दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान) [421
SR No.090075
Book TitleBhagavana Mahavira Hindi English Jain Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanamati Mata
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages653
LanguageHindi, English
ClassificationDictionary, Dictionary, & Religion
File Size16 MB
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