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________________ मांतवर्ष प्रदान किया जाने वाला पुरस्कार। श्री छोटेलाल जैन पुरस्कार-सन 2004 में स्थापित 11.000/-रूपये की नगद राशि सहित प्रतिवर्ष प्रदान किया जाने वाला पुरस्कार। उपरोक्त पुरस्कारों के अतिरिक्त भगवान ऋषभदेव अंतर्राष्ट्रीय निर्वाण महोत्सव वर्ष के अवसर पर घोषित 2,50,000/- रूपये की नगः, पशि लाभगमान तापीय महामार्ड :1,000/.. रुपये की नगद राशि का 'ब्राझी पुरस्कार' भी संस्थान द्वारा प्रदान किया गया। भगवान ऋषभदेव नेशनल एवार्ड सन् 2003 में 'कुण्डलपुर महोत्सव के अवसर पर तत्कालीन सांसद एवं पूर्व वित्त राज्य मंत्री श्री बी.धनंजय कुमार जैन को कुण्डलपुर (नालंदा) में प्रदान किया गया। उपरोक्त सभी निर्माण योजनाएं, सामाजिक, धार्मिक तथा शैक्षणिक कार्यक्रम पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी की पावन प्रेरणा से उनके ससंघ सानिध्य में इस संस्थान द्वारा आयोजित किये गये हैं। संघस्थ प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी का मार्गदर्शन एवं पीठाधीश झुलकरत्न श्री मोतीसागर जी महाराज का निर्देशन इन समस्त कार्यों में अत्यन्त महत्वपूर्ण रहा है। इस प्रकार यह संस्थान अपनी विभिन्न समर्पित कार्य योजनाओं द्वारा समाज की सेवा में प्रतिक्षण संलग्न है। मानसिक शांति, आध्यात्मिक विकास, प्राकृतिक सौन्दर्य एवं अन्य अनेक अवसरों को एक साथ प्राप्त करने हेतु यह संस्थान जंबूटीप दर्शन के लिए आपको सादर आमंत्रित करता है। संस्थान की सम्प्रेरिका पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी - एक अद्भुत व्यक्तित्व जिनके जीवन का प्रत्येक क्षण स्वर्णिम इतिहास का एक नया पृष्ठ होता है, जिनके बढ़ते चरणों का प्रत्येक कदम नूतन तीर्थ के निर्माण का पन्ना होता है,जिनकी दृष्टि का प्रत्येक बिन्दु एक सिन्धु का स्वरूप होता है, जिनके लेखन का प्रत्येक शब्द जिनागप का सार होता है तथा जिनकी प्रत्येक चर्या एवं क्रिया मूलाचार को साकार करने वाली होती है, ऐसी पूज्य गणिनीप्रमुख आर्यिकाशिरोमणि श्री ज्ञानमती माताजी की पावन प्रेरणा से जहाँ हस्तिनापुर, अयोध्या, मांगीतुंगी आदि अनेक तीर्थों के जीर्णोद्धार एवं विकास हुए हैं, वहीं वे नित्य कई प्रेरणाओं के साथ समाज को नई राहें प्रदान कर रही हैं। उन्न पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी का जन्म 22 अक्टूबर सन् 1934, आधिन शुक्ला पूर्णिमा (शरदपूर्णिमा) को हुआ था। बचपन में ही धर्मग्रन्थों के स्वाध्यायादि के कारण एवं पूर्वजन्म के पुण्यसंस्कारवश मन में संसार से वैराग्य के अंकुर उत्पन्न हो गये और सन् 1952 में 18 वर्ष की युवावस्था में शरदपूर्णिमा के ही दिन आपने सप्तमप्रतिमारूप आजन्म ब्रह्मचर्यवत ग्रहण कर लिया,
SR No.090075
Book TitleBhagavana Mahavira Hindi English Jain Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanamati Mata
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages653
LanguageHindi, English
ClassificationDictionary, Dictionary, & Religion
File Size16 MB
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