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दिया। काफी लंबे दौर तक मैंने इस कार्य को किया लेकिन समय की व्यस्तता और कार्य की जटिलता के कारण इस कार्य को स्वयं मेरे द्वारा करने में एक लम्बी समयावधि की आवश्यकता प्रतीत हुई। अत: इस कार्य को शीघ्रातिशीघ्र पूर्ण करने की उत्सुकता से हमने सहयोग लेने का विचार किया और इस कार्य की पूरी संकलन योजना डॉ. अनुपम जैन, इंदौर को बताई गई एवं इस कार्य को पूरा करके 25 अप्रैल 2002 भगवान महावीर जन्मकल्याणक वर्ष समाधन तक इसे प्रकाशित करने का भाव दर्शाया।
मुझे प्रसन्नता हुई कि अनुपम जी ने इस परियोजना को गहराई से समझकर शीघ्र इसके संकलन को अपने दक्ष सहयोगियों विशेष रूप से जीवन प्रकाश जैन (इंदौर) एवं कोमलचंद जैन (इंदौर) से आगे गति प्रदान करवाई। इस मध्य 1-2 जैन शब्दकोश और दृष्टिगत हुए जो समय की मांग के अनुसार तैयार किये गये प्रतीत होते थे किन्तु हमारा विचार 'भगवान महावीर हिन्दी - अंग्रेजी जैन शब्दकोश' बनाने का इसलिये और प्रबल होता गया कि एक सर्वागीण एवं निष्पक्ष ग्रन्थ के रूप में समाज के समक्ष ऐसा शब्दकोश आवे जिसमें जैन धर्म से सम्बन्धित लगभग सभी शब्द समाविष्ट हो। यह सुगम लगने वाला कार्य इसीलिये दुरूह होता चला गया और सन् 2001 से शुरू होकर सन् 2004 (3 वर्ष) तक पूरा हो सका ।
सन् 2002 के चातुर्मास के मध्य तीर्थकर ऋषभदेव तपस्थली- प्रयाग तीर्थ (इलाहाबाद ) एवं पुनः सन् 2003 में 18 जून से 2 जुलाई तक कुण्डलपुर (नालंदा) में पूज्य गणिनी माताजी के सानिध्य में इस ग्रंथ की वापना आयोजित की गई। उचित संशोधन, परिवर्तन इत्यादि का क्रम चला और पुनः आवश्यक दिशा-निर्देश देकर चाचना हतु अक्टूबर-नवम्बर 2003 का समय निर्धारित किया गया । 10 नवम्बर 2003 से नंद्यावर्त महल परिसर, कुण्डलपुर (नालंदा) शब्दकोष की गंभीर वाचना पुनः प्रारंभ हुई। इस तरह वाचना के माध्यम से इस कार्य की समस्त गतिविधियों एवं संकलन पर महत्वपूर्ण निर्णय एवं मार्गदर्शन प्रदान किया जाता रहा।
आर्यिका चर्या की नित्य आवश्यक क्रियाओं का निर्वहन करते हुए उसके अतिरिक्त मेरा अधिकांश समय शब्दकोश बाचना में व्यतीत होने लगा । पूज्य गणिनी माताजी पूर्ण रूचि के साथ यथासंभव एक-एक शब्द पर ध्यान देती थीं एवं विविध ग्रंथ निकलवाकर उन उन शब्दों का अन्वेषण करके आगमोक्त व्याख्या बताकर शब्दकोश की प्रामाणिकता को हर कदम पर सुनिश्चित कर देती थीं। जीवन प्रकाश, कोमलचंद जी एवं संघस्थ ब्र. (कु.) स्वाति वाचना के साथ-साथ अंग्रेजी व्याख्या में सहयोग करते थे। 29 जनवरी 2004 तक रात-दिन कठोर परिश्रम करके जून 2003 में देखे शब्दों की भी पुन: वाचना करते हुए सम्पूर्ण शब्दकोश को एक बार पुनर्परिवर्तनसंशोधन - नये शब्दों का जोड़ना - घटाना इत्यादि के द्वार से पार कर दिया गया। लगभग हर पृष्ठ में लाल निशानों की कतार देखने वाले को यही लगता था कि ये Correction नहीं वरन् Alteration हैं, पर वास्तविकता यह थी कि पूज्य ज्ञानमती माताजी के सानिध्य में बैठने से शब्दों के अर्थ ठीक होते हुए भी आगम के परिप्रेक्ष्य में जो तथ्यात्मक व्याख्या उपलब्ध हुई, उससे कोश
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