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परिशिष्यऽध्यायः
बीज को दल दल पर लिखे। फिर (प्रथमे च दले वर्षान्मासां) पहले दल पर वर्ष महीने की (श्चैव बहिर्दले) कल्पना करे।
भावार्थ-बाहर सोलह दलों पर मूलबीज के अक्षर लिखे, उसके बाद प्रथम दल पर वर्ष महीनों की कल्पना करें। १७९ ।।।
दिवसान् षोडशीरेष साध्यनाम सुकर्णिके।
सप्ताहं पूजयेच्चक्रं तदा तं च निरीक्षयेत् ।। १८० ।।
(षोडशीरेव दिवसान्) सोलह दिनों के (साध्यनाम सुकर्णिके) साध्यनाम की कर्णिका में (सप्ताहपूजयेच्चक्र) एक सप्ताह तक उस चक्र की पूजा करे, (तदा तं च निरीक्षयेत् तब उसका फिर निरीक्षण करे।
भावार्थ-----सोलह दिनों को साध्यनामकी कर्णिका में एक सप्ताह तक उस चक्र की पूजा करे तब उसका फिर निरीक्षण करे।। १८०॥
यद्दले चाक्षरं लालं तहिने त्रियो शुत्रम्:
वर्ष मासं दिनं पश्येत् स्वस्य नाम परस्य वा।। १८१॥
(यछलेचाक्षरं लुप्त) जिस दल का अक्षर लुप्त हो जाय (तद्दिनेम्रियतेध्रुवम्) उसी दिन निश्चय से मरण होता है। (स्वस्य नाम परस्य वा) स्व नाम को देखे वा रोगी के नाम को देखे (वर्षं मासं दिनं पश्येत्) वर्ष महीना वा दिन को देखे।
भावार्थ-जिस दल का अक्षर लुप्त हो जाये उसी दिन उसका निश्चय से मरण हो जायगा, स्वनाम का अथवा पद नाम का वर्ष, महीना, दिन को देखे।। १८१॥
यदा वर्णं न लुप्तं स्यात्तदा मृत्युन विद्यते।
वर्षद्वादश पर्यन्तं कालज्ञानं विनोदितम् ॥ १८२॥
(यदावर्णं न लुप्तस्या) जिस वर्ण का लोप न हो (तदामृत्युनविद्यते) उसकी मृत्यु नहीं होती है (वर्षं द्वादशपर्यन्तं) बारह वर्ष पर्यन्त (कालज्ञानं विनोदितम्) काल ज्ञान को देखना चाहिये।
भावार्थ-जिस वर्ण का लोप नहीं हो उसकी मृत्यु नहीं होती है बारह वर्ष पर्यंत इस काल ज्ञान को देखना चाहिये।। १८२।।