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भद्रबाहु संहिता
अभिमन्त्रित शतवार पश्येच्च करयुगलम्। करे करपर्वणि यावन्मात्राश्च विन्दवः कृष्णाः ।। १७६ ।।
(अभिमन्त्रित शतवारं) फिर सौ बार मंत्रित करके (कर युगलम्पश्येच्च) दोनों हाथ देखे (करेकरपर्वणि) हाथ के पर्यों पर (यावन्मात्राश्चविन्दव: कृष्णाः) जितने भी काले बिन्दु दिखे।
भावार्थ-फिर सौ बार मंत्रित करके दोनों हाथों को देखे, हाथों के पर्वो पर जितने भी बिन्दु दिखे।। १७६ ।।
दिनानि तावन्मात्राणि मासान् वा वत्सराणि वा।
स्वस्थितो जीवतिप्राणी वीक्षितं ज्ञान दृष्टिभिः॥ १७७।।
(तावन् मात्राणि दिनानि) उतने ही दिन मात्र (वत्सराणिवामासान्) वसं वत्सर महीने मात्र (स्वस्थितोजीवतिप्राणी) वह प्राणी जीता है ऐसा (ज्ञान दृष्टिभिः वीक्षितं) ज्ञान दृष्टि के द्वारा कहा गया है।
भावार्थ-उतने दिन संवत्सर, महीनेमात्र वह रोगी जीयेगा ऐसा ज्ञान दृष्टिधारियों ने कहा है।। १७७॥ रोचनाकुङ्कुमैलाक्षा
नामिकारक्तसंयुता। षोड़शाक्षरंलिखेत्पद्यं तद्वाहिश्चैव तत्समम्॥ १७८॥ (रोजनाकुङ्कुमेलाक्षा) गोरोचन, कुंकुंम, लाक्षा (नामिकारक्तसंयुता) अनामिका आदि से संयुक्त विधि को कहा (षोडशाक्षरंलिखेत्पा) अब सोलह अक्षर को पद्म पर स्थापना कर (तद्वहिश्चैवतत्समम्) उसीके समान उसके बाहर |
भावार्थ-गोरोचन कुंकुम, लाक्षा आदि से युक्त विधि को कही। अब सोलह अक्षरों से संयुक्त कमल बनाकर सोलह अक्षर लिखे, उसके बाहर ।। १७८ ॥
षोडशाक्षरतो बाह्ये मूलबीजं दले दले।
प्रथमे च दले वर्षान्मासांश्चैव बहिर्दले॥१७९ ।। (बाह्ये) बाहर (षोडशाक्षरतो) सोलह अक्षरों से (मूलबीजंदले दले) मूल