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भद्रबाहु संहिता
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नासाग्रेस्तनमध्ये गुह्ये चरणान्तदेशे।
गगन तलेऽपिच्छायापुरुषो दृश्यते निमित्तज्ञैः॥७१॥ (निमित्तज्ञैः) निमित्तज्ञानीयों ने (नासाग्रे) नाक के अग्र भाग में (स्तनमध्ये) स्तन के मध्य में (गुह्ये) गुह्य स्थान में (चरणान्तदेशे) दोनों चरणों के बीच में (गगनतलेऽपि) आकाश के नीचे (छायापुरुषों दृश्यते) छाया पुरुष को देखा है।
भावार्थ-निमित्त ज्ञानीयों ने छाया पुरुष को नाक के अग्र भाग पर स्तनों के बीच में, गुह्य स्थान के दोनों पावों के बीच में निर्मल आकाश के नीचे देखा और उनको छाया पुरुष दिखलाई भी दिया हैं।। ७१॥
छायाविम्बं स्फुटं पश्येद्यावत्तावत् स जीवति।
व्याधिविघ्नादिभिस्त्यक्त: सर्वसौख्याद्यधिष्ठितः॥७२ ।। (छायाविम्ब स्फुटं पश्येद्या) छाया पुरुष को स्पष्ट रूप से देखने पर (वत्तावत स जीवति) दीर्घ काल तक जीता है, (व्याधिविघ्नादिभिस्त्यक्त:) सर्व व्याधि से व विघ्नादि से दूर होकर (सर्व सौख्याधिष्ठितः) सर्व सुख को भोगता है।
__ भावार्थ-जो व्यक्ति छायापुरुष को स्पष्ट रूप से देखता है वह दीर्घकाल तक जीता है और सर्व आधि व्याधि से दूर होकर सम्पूर्ण प्रकार का सुख भोगता है।। ७२ ।।
आकाशे विमले छायापुरुषं हीनमस्तकम्।
यस्यार्थं वीक्ष्यते मन्त्री षण्मासं सोऽपि जीवति ॥७३।। (यस्यार्थं वीक्ष्यते मन्त्री) जिसके लिये भी मन्त्री (आकाशे विमले) निर्मल आकाश में (छाया पुरुष) छाया पुरुष का (हीनमस्तकम्) मस्तक हीन दिखे तो (षण्मासं सोऽपि जीवति) वह भी छह महीने तक ही जीता है।
भावार्थ-जिसके लिये भी मन्त्री निर्मल आकाश में छाया पुरुष का मस्तक नहीं देखता है वह छह महीने तक जीता है अर्थात् मस्तक रहित छाया पुरुष छह महीने की आयु सूचित करता है।। ७३ ॥