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परिशिष्टाऽध्याय:
(शास्त्र दृष्ट्या समासतः) शास्त्र की दृष्टि (निजपरच्छाया उक्ता) निज और परकी छाया का वर्णन किया अब मैं (लोकसम्मतम्) लोक सम्मत (छायापुरुषं परं ब्रूवे) छाया पुरुष का वर्णन करता हूँ।
भावार्थशास्त्र की ष्टि से अपनी और घर की छाया का मैंने वर्णन किया अब मैं लोक सम्मत छाया पुरुष का वर्णन करता हूँ।।। ६८॥
मदमदनविकृतिहीनः पूर्वविधानेन वीक्ष्यते।
सम्यक् मन्त्रीस्वपरच्छायां छायापुरुष: कथ्यते सद्भिः ।। ६९॥
जो मंत्री (पूर्वविधानेन) पूर्व विधान से (मद) अहंकार (मदनविकृति हीन:) विषय वासना व क्रोधमान माया लोभादिक से रहित है (सम्यक् मंत्री) वह सम्यक मंत्री है और वह ही (स्वपरच्छायां) स्व की छाया और पर की छाया को (छायापुरुषः कथ्यते सद्भिः) अच्छे जानकार ज्ञानी छाया पुरुष कहते हैं।
भावार्थ-जो मंत्रवादि पूर्व विधान के द्वारा अहंकार व विषय वासनाओं से रहित कषायादिक से रहित होकर स्व और पर की छाया को देखता है वही छाया पुरुष है। इस छाया पुरुष का अब लोकन करने के लिये मंत्रवादि को पूर्वोक्त कुष्मांदिनी देवी के मंत्र की आराधना करके फिर स्वयं की व पर की छाया को देखे इससे उसकी आयु का ज्ञान हो जायगा ।। ६९ ।।
सम भूमि तले स्थित्वा समचरणयुगप्राप्ब भुजयुगल:।
बाधारहिते धर्मे विवर्जिते क्षुद्रजन्तुगणैः॥७० ।। (सम भूमितले स्थित्वा) समान भूमि पर स्थित होकर (सम चरणयुगप्रलम्बभुज युगल:) समान चरण युगल करके दोनों हाथों को लटका कर (बाधा रहिते धर्मे) सूर्य की किरणों में (क्षुद्र जन्तु गुणै विवर्जिते) जीव जन्तुओं से रहित समय में मन्त्री छाया पुरुष का अवलोकन करे।।
भावार्थ-सम भूमि पर खड़ा होकर दोनों चरण युगल में चार अंगुल का फासला रखे दोनों हाथों को नीचे लटका देवे बाधा रहित सूर्य की किरणों से सहित होकर छाया पुरुष का अवलोकन मंत्री करे ।। ७० ।।