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__ भद्रबाहु संहिता |
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न जानाति निजं कार्य पाणिपादौ च पीड़ितौ। प्रत्येकमेभिस्त्वरिष्टैस्तस्य
मृत्यु वेल्लघुः ।। २२॥ (पाणिपादौ च पीडितौ) हाथ पैर के पीडित करने पर भी (न जानातिनिज कार्यं) अपने कार्य को नहीं जानता है। (प्रत्येकमेभिस्त्वरिष्टैः) यह प्रत्येक अरिष्ट है इस अरिष्ट से (तस्य मृत्युभवेल्लघु:) उसकी मृत्यु अवश्य होती है।
भावार्थ--हाथ पांव या अन्य अंगों को पीडित करने पर भी जो अंगों-पांग अपने कार्य से विचलित हो गये हो तथा जो निचेष्ट हो गया है उस की मृत्यु अवश्य होती है।॥२२॥
स्थूलो याति कृशत्वं कृशोऽप्य कस्माच्च जायते स्थूलः।
स्थगस्थगति यस्म काय: कृतशीर्षहस्तो निरन्तरं शेते ।। २३॥ (स्थुलोयातिकृशत्वं) स्थूल व्यक्ति अकस्मात् पतला हो जाय (कृशोऽप्यकस्माच्चजायतेस्थूल:) और पतला मनुष्य अकस्मात् मोटा हो जाय और (स्थगस्थगतियस्यकाय:) जिसका शरीर कांपने लगे (कृतशीर्षहस्तोनिरन्तरंशेते) जो अपने सिर पर हाथ रख कर निरंतर सोता रहे तो समझो उसकी आयु एक महीने की बाकी है।
भावार्थ--मोटा मनुष्य अकस्मात पतला और पतला अकस्मात मोटा हो जाय और निरंतर अपने सिर पर हाथ रख कर सोवे तो उसकी आयु एक महीने की समझो अर्थात् वह एक महीने में मरण को प्राप्त हो जायगा ।। २३॥
ग्रीवोपरि करबन्धी गच्छत्यालीभिईढ़बन्धं च। क्रमणोद्यमहीनस्तस्यायुर्मास
पर्यन्तम् ।। २४ ।। ग्रीवोपरिकरबन्धो) गर्दन के ऊपर हाथ से बंधन डाले (गच्छत्यङ्गुलीभिKढबन्ध्यंच) अंगुली से दृढ बंधन डालने पर भी गर्दन बंधे नहीं तो (क्रमणोद्यमहीन:) क्रमश: उद्यम महीन हो जाय (तस्यायुर्मासपर्यन्तम्) तो उसकी आयु एक महीने रह गई है।
भावार्थ-गर्दन को अपने हाथ को अंगुलीयों से दृढ बंधन डालने पर भी बांधने में नहीं आवे तो उसकी आयु एक महीने की समझो।॥ २४ ॥