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परिशिष्टाऽध्यायः
मासिका नहीं दिखे तो तीन दिन की आयु समझो और जिह्वा न दिखे तो एक दिनकी आयु समझो अर्थात रोगी का इसी क्रम से मरण होगा ।। १८॥
पाणिपादोपरि क्षिप्तं तोयं शीघ्रं विशुष्यति ।
दिनत्रयं च तस्यायुः कथितं पूर्वसूरिभिः ॥१९ ।। (पाणिपादोपरि तोयंक्षिप्तं) जिसके हाथ और पावों के ऊपर डाला गया पानी (शीघ्रंविशुष्यति) शीघ्र ही सुख जाता हो (तस्यायुः दिनत्रयं च) उसकी आयु तीन दिन की है ऐसा (पूर्वसूरिभिःकथितं) पूर्वाचार्यों के द्वारा कहा गया है।
भावार्थ—जिसके हाथों और दोनों पांवो पर पानी डालने पर शीघ्र सुख जाय तो उसकी आयु तीन दिन की रह जाती है ऐसा पूर्वाचार्यों ने कहा है॥ १९॥
निर्विश्रामो मुखात्स्वासो मुखाद्रक्तं पतेद्यदा।
यद्दष्टिः स्तब्धः निष्पन्दा वर्णचैतन्यहीनता॥ २० ।। (निर्विश्रामोमुखात्स्वासो) जिसके मुख से सतत स्वास चलती हो (मुखाद्रक्तं पतेद्यदा) मुख से रक्त पड़ता हो (यदृष्टिः स्तब्धः) जिसकी दृष्टि स्तब्ध हो जाय (निष्पन्दा वर्ण चैतन्यहीनता) वर्णनिषांद हो जाय, और चैतन्य हीन हो जाय, तो समझो शीघ्र मरण होने वाला है।
भावार्थ-जिसके मुख से सतत स्वांस चले अर्थात् उर्ध्व स्वांस चले मुख से रक्त पड़े तथा दृष्टि रुक जाय वर्ण और चैतन्य निष्पंद हो जाय तो समझो उसका शीघ्र मरण होने वाला है ।। २० ।।
स्थिरा ग्रीवा न यस्यास्ति सोत्स्वासो हृदि रुध्यते।
नासावदन गुह्येभ्यः शीतलः पवनो वहेत् ॥ २१॥ (स्थिराग्रीवा न यस्यास्ति) जिसकी गर्दन टेड़ी हो जाय (सोत्स्वासो हृदि रुध्यते) और जिसकी हृदय गति रुक जाती है (नासावदनगुह्येभ्य:) नाक, शरीर
और गुह्यस्थान से (शीतल: पवनोवहेत्) ठंडी वायु चलने लगे तो शीघ्र मरण हो जायगा।
भावार्थ--जिसकी गर्दन टेड़ी हो जाय स्वास की गति रुक जाय नाक, शरीर व गुह्य स्थानों से ठंडी हवा चलने लगे तो तो व्यक्ति शीघ्र मरण कर जायगा ॥२१॥