________________
परिशिष्टाऽध्यायः
सुकुमारं कर युगलं कृष्णं कठिनमवेद्यदायस्य।
न स्फुटन्ति बागुलयस्तस्यारिष्टं विजानीहि ॥१३॥
यदि किसी के (सुकुमारं कर युगलं) सुकुमार के दोनों हाथ (कृष्णं कठिनमवेद्यदायस्य) कठोर और काले हो जाय (नस्फुटन्ति वाालय:) और अंगुलियां टेडी हो जाय तो (तस्यरिष्टं विजानीहि) उसका मरण सात दिन में हो जाता है।
भावार्थ-यदि किसी के सुकुमार हाथ कठोर और काले पड़ जाय और दोनो हाथों की अंगुलियां टेड़ी हो जाय सिद्धि न होवे तो उसका मरण सात दिनों में हो जायगा ॥१३॥
स्तब्धं लोचनयोर्यग्मं विवर्णा काष्ठवत्तनुः ।
प्रस्वेदो यस्य भालस्थः विकृतं वदनं तथा ।। १४ ॥ (स्तब्धं लोचनयोर्युग्मं) जिस की दोनों आंखे स्तब्ध हो जाय (विवर्णाकाष्ठवत्तनुः) विवर्ण हो जाय काष्ट के समान शरीर अकड़ जाय (प्रस्वेदो यस्य भालस्थः) और जिसके भाल में पसीना आने लगे (विकृतं वदनं तथा) तथा शरीर विकृत हो जाय तो उसका मरण सात दिन में हो जायगा।
भावार्थ-जिसकी दोनों आंखों की पुतलियां रुक जाय एवं जिसका शरीर विवर्ण और काष्ठ के समान स्थिर हो जाय और जिसके भाल में पसीना आने लगे तथा जिसका शरीर विकृत हो जाय तो समझो उसका मरण सात दिन में हो जाता है।। १४ ।।
निर्निमित्तो मुखे हासस्चक्षुभ्ा जलविन्दवः।
अहोरात्रं सवन्त्येव नखरोमाणियान्ति च ।। १५॥ (निर्निमित्तोमुखे हास:) कोई निमित्त न होने पर भी मुंह से हंसी आने लगे (चक्षुभ्या॑जलविन्दवः) आंखों से निरंतर आंसु (अहोरात्रं सवन्त्येव) रात दिन बहने लगे ( नखरोमाणि यान्ति च) नख और रोमों से पसीना बहे तो समझो उसका मरण सात दिन में हो जायगा।
भावार्थ-कोई कारण न होने पर भी हँसी आने लगे, आंखों से निरंतर