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| षड्विंशतितमोऽध्यायः
ही इच्छाएँ किसी कारण से मन में उदित होकर हमारे तद्नुरूप कार्य करा सकती हैं। मानव अपनी इच्छाओंके बलसे ही सांसारिक क्षेत्रमें उन्नति या अवनति करता है, उसके जीवनमें उत्पन्न होने वाली अनन्त इच्छाओं में कुछ इच्छाएं अप्रस्फुटित अवस्थामें ही विलीन हो जाती हैं, लेकिन कुछ इच्छाएँ परिपक्वावस्था तक चलती रहती है। इन इच्छाओंमें इतनी विशेषता होती है कि ये बिना तृप्त हुए लुप्त नहीं हो सकती । सम्भाव्य गणितके सिद्धान्तानुसार जब स्वप्नमें परिपकावस्था वाली अतृप्त इच्छाएं प्रतीकाधारको लिये हुए देखी जाती है, उस समय स्वप्नका भावी फल सत्य निकलता है। अबाधभावानुसंगसे हमारे मनके अनेक गुप्त भाव प्रतीकोंसे ही प्रकट हो जाते है, मनकी स्वाभाविक धारा स्वप्नमें प्रवाहित होती है, जिससे स्वप्नमें मनकी अनेक चिन्ताएँ गुथी हुई प्रतीत होती हैं। स्वप्नके साथ संश्लिष्ट मनकी जिन चिन्ताओं और गुप्त भावोंका प्रतीकोंसे आभास मिलता है, वही स्वप्नका अव्यक्त अंश भावी फलके रूपमें प्रकट होता है। अस्तु उपलब्ध सामग्री के आधार पर कुछ स्वप्नोंके फल नीचे दिये जाते हैं।
अस्वस्थ-अपने सिवाय अन्य किसीको अस्वस्थ देखने से कष्ट होता है और स्वयं अपनेको अस्वस्थ देखनसे प्रसन्नता होती है। जी.एस. मिलर के मत से स्वप्नमें स्वयं अपनेको अस्वस्थ देखने से कुटुम्बियोंके साथ मेल-मिलाप बढ़ता है एवं एक मासके बाद स्वप्नद्रष्टाको कुछ शारीरिक कष्ट भी होता है तथा अन्यको अस्वस्थ देखने से द्रष्टा शीघ्र ही रोगी होता है। डॉक्टर सी. जे. विटवे के मतानुसार अपनेको अस्वस्थ देखने से सुख-शान्ति और दूसरेको अस्वस्थ देखने से विपत्ति होती है। सुकरात के सिद्धान्तानुसार अपने और दूसरे को अस्वस्थ देखना रोग सूचक हैं। विवलोनियन और पृथगबोरियन के सिद्धान्तानुसार अपनेको अस्वस्थ देखना निरोग सूचक और दूसरको अस्वस्थ देखना पुत्र-मित्रादिके रोगको प्रकट करनेवाला होता है।
आवाज-स्वप्नमें किसी विचित्र आवाजको स्वयं सुनने से अशुभ सन्देश सुननेको मिलता है। यदि स्वप्नकी आवाज सुनकर निद्राभंग हो जाती है तो सारे कार्यों में परिवर्तन होनेकी सम्भावना होती है। अन्य किसीकी आवाज सुनते हुए