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पदिशतितमोऽध्यायः
छर्दने मरणं विन्धादर्थनाशो विरेचने।
छत्रो यानाद्य धान्यानां ग्रहण मार्गमादिशेत् ॥४३॥ __ यदि स्वप्न में व्यक्ति (छर्दन) वमन करना देखे तो (मरणं) मरण होता है (अर्थनाशो विरेचनेविन्द्या) विरेचन देखने से धन का नाश जानना चाहिये (यानाद्य छत्रो मार्गग्रहण) वाहनादि के छत्र के मार्ग में ग्रहण करना (धान्यानामादिशेत्) धान्यों का अभाव होम, ऐसा समझो:
भावार्थ-यदि स्वप्न में व्यक्ति वमन करता हुआ देखे तो मरण होगा, अथवा मल करता हुआ देखे तो धन का नाश होता है, और मार्ग में वाहनादिक का छत्र ग्रहण करना धान्यो का अभाव कहा गया है॥४३।।
मधुरे निवेश स्वप्ने दिवा च यस्य वेश्मनि।
तस्यार्थं नाशं नियतं मूर्ति वाऽप्यभिनिर्दिशेत्॥४४॥ (स्वप्ने) स्वप्न में (दिवा) दिन में (यस्यवेश्मनि) जिसके घर में (मधुरेनिवेश) प्रवेश करता हुआ देखे तो (तस्यार्थनाशं) उसके धन का नाश होता है (वाऽप्य) और (नियतपूर्ती अभिनिर्दिशेत्) नियम से भरण भी होता है ऐसा निर्देश किया गया
भावार्थ स्वप्न में जो व्यक्ति दिन में जिसके घर में प्रवेश करता हुआ देखे तो उसके धन का नाश अवश्य होता है वा उसका मरण होता है ऐसा निर्देशन किया गया है।। ४४॥
यःस्वप्ने गायते हसतेनृत्यते पठते नरः।
गायने रोदनं विन्धात् नर्तने वध बन्धनम्॥४५॥ (यः) जो (नरः) मनुष्य (स्वप्ने) स्वप्न में (गायते हसते नृत्ये ते पठते) गाता है, हसंता है नाचता है पढ़ता है (गायनेदोदनं नर्तने) गाता है रोता है नृत्य करता है (वधबन्धनम् विन्द्यात्) तो उसका वध, बंधन होता ऐसा जानो।
भावार्थ-जो मनुष्य स्वप्न में गाता है, हसता है, नाचता है, पढ़ता है। गाने से रोना पड़ता है और नाचना देखने से वध बंधन होता है।। ४५॥