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भद्रबाहु संहिता |
__ भावार्थ-जो स्वप्न में प्रेनयुद्ध अथवा गों मे जुते हुए रथ पर आरूढ होकर दक्षिण दिशा अपने को जाता हुआ देखे तो उसका शीघ्र मरण हो जाता है॥३३॥
बराहयुक्ता या नारी ग्रीवाबद्धं प्रकर्षति ।
सा तस्या:पश्चिमा रात्री मृत्युः भवतिपर्वते॥ ३४।। (पश्चिमारात्री) यदि स्वप्न में पश्चिम रात्री को (बराहयुक्ता) शूकर युक्त (नारी) नारी (ग्रीवाबद्धप्रकर्षति) गर्दन को बांध कर खींचे तो (तस्याः) उसकी (मृत्यु: भवतिपर्वते) पर्वत पर मृत्यु होती है।
भावार्थ-यदि स्वप्न में पश्चिमी रात्री को शूकर युक्त स्त्री दष्टा की गर्दन पकड़ कर खींचे तो उस व्यक्ति की मृत्यु पर्वत पर होती है।। ३४ ॥
खर-शूकरयुक्तेन खरोष्ट्रेण वृकेण वा।
रथेन दक्षिणांयाति दिशं स म्रियते नरः॥३५॥ स्वप्न में यदि मनुष्य (खर शूकर युक्तेन) गधे व शूकर से युक्त अथवा (खरोष्ट्रेण वृकेण वा) गधा या ऊंट भेडिया से सहित (रथेन) रथ को (दक्षिणां याति) दक्षिण में जाता हुआ देखे तो वह मनुष्य अवश्य ही मरण को प्राप्त करता है।
भावार्थ-यदि स्वप्न में गधे, शूकर, भेडिया, ऊँट से सहित रथ को खींचता हुआ दक्षिण दिशा में जावे तो उस मनुष्य का मरण होता है।। ३५॥
कृष्णवासायदाभूत्वा प्रवासं नावगच्छति।
मार्गे सभयमाप्नोति याति दक्षिणगो वधम् ।। ३६ ॥ (कृष्णवासायदा भूत्वा) स्वप्न में यदि कृष्णवास होकर (प्रवासं नावगच्छति) प्रवास को प्राप्त नहीं होता है (मार्गेसभयमाप्नोति) और मार्ग में भय उत्पन्न हो एवं (दक्षिणगोयाति) दक्षिण की और जाता हुआ दिखे तो (वधम्) समझो मरण होगा।
__ भावार्थ-यदि स्वप्न में कृष्णवास होकर प्रवास न करे मार्ग में भय हो और दक्षिण की ओर जाता हुआ दिखे तो समझो मरण होगा ॥३६ ।।