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पर्विशतितमोऽध्यायः
मक्षिका मधु) पीतल रज्जु (मधु) मधु (यस्मिन् प्रयच्छन्ति) आदि का दान जिसको करता है (तस्य) उसका (ध्रुवं) निश्चय से (मरणं भवेत्) मरण होता है।
भावार्थ-जो मनुष्य स्वप्न में शीशा, रांगा, जस्ता, पीतल, रस्सी, मक्खी, मधु आदि का जिसको दान करता है उसका निश्चय से मरण होता है इसमें कोई संदेह नहीं है।। २५॥
अकालजं फलं पुष्पं काले वा यच्चगर्मितम्।
यस्मै स्वप्ने प्रदीयेते तादृशयासलक्षणम्॥२६॥ (यस्मै स्वप्ने) जिसके स्वप्न में (अकालज) अकाल में उत्पन्न होने वाले (फलं पुष्पं) फल और पुष्पदिखे वा (काले यच्चगर्भितम्) काल में उत्पन्न होने वाले निंदित फल पुष्पों को (प्रदीयेते) देते हुए देखे तो (तादृशयासलक्षणम्) उसी लक्षण वाला फल होता है। आयास लक्षण वाला फल होता है।
भावार्थ-जिस मनुष्य के स्वप्न में अकाल में उत्पन्न होने वाला फल और पुष्प जिसको देते हुए देखे जाय वह स्वप्न का फल आयास लक्षणवाला होता है।॥ २६॥
अलक्तकं वाऽथ रोगो वा निवातं यस्य वेश्मनि ।
गृहदाघमवाप्नोति चौरैर्वा शस्त्रघातनम्॥२७॥ जो व्यक्ति स्वप्न में (यस्य वेश्मनि) जिस के घर में (अलक्तकं वाऽथ रोगो वा निवातं) लाक्षारस या रोग अथवा वायु का अभाव देखता है तो उसके घर में (गृहदाघमवाप्नोति) आग लगती है (वा) वा (चौरे शस्त्र घातनम्) चोरों के द्वारा शस्त्र से घात होता है।
भावार्थ-जो व्यक्ति स्वप्न में जिसके घर में लाक्षारस वा रोग वा वायु का अभाव देखता है उसके घर में आग लगती है वा चोरों के द्वारा शस्त्रघात होता है॥ २७॥
अगम्यागमनं चैव सौभाग्यास्याभिवृद्धये। अलंकृत्वा रसं पीत्वा यस्य वस्त्रयाश्चयद्भवेत् ।। २८॥