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भद्रबाहु संहिता |
बद्धो योऽभिमुच्यते) वा बंधन में पड़ा हुआ छूटा हुआ देखे तो (विप्रस्यप्तोमयानाय) ब्राह्मण के लिये सोमपान और (शिष्याणामर्थवृद्धये) शिष्य के लिये अर्थ को वृद्धि होती है।
भावार्थ-जो मनुष्य स्वप्न में अपने को शर्बत पीता हुआ देखे या किसी को बंधन मुक्त देखे तो ब्राह्मणों के लिये सोमपान मिलता है और शिष्यों के लिये धन प्राप्ति होती है।। २२॥
निम्नं कूपजलं छिद्रान् यो भीत: स्थलमारुहेत्।
स्वप्ने स वर्धते सस्य धन थान्येन मेधसा॥२३॥ (यो) जो मनुष्य स्वप्न में (निम्नं कूप जलं छिद्रान्) नीचे के कुए के जल को छिद्रों को (भीत: स्थलमारुहेत्) डरता हुआ स्थल पर आरोहण करता है (स) उसको (सस्य धन धान्येन मेधसा वर्धते) धन-संपत्ति और बुद्धि की वृद्धि होती
भावार्थ-जो व्यक्ति स्वप्न में कुएँ के जल को और छिद्रों को डरता हुआ भूमि पर देखता है, उसके धन धान्य और बुद्धि की वृद्धि होती है।। २३ ।।
श्मशाने शुष्कदारुं वा बलिं शुष्कद्रुमं तथा।
यूपं मारुहेश्वऽस्तु स्वप्ने व्यसनमाप्नुयात् ॥२४॥ जो व्यक्ति (स्वप्ने) स्वप्न में (श्मशानेशुष्कदार) श्मशान व सूखी हुई लकड़ी या (बल्लिंशुष्क द्रुमं तथा) लता और सूखा हुआ पेड़ तथा (यूपंमारुहेश्वस्तु) यज्ञ के खूटे पर जो चढ़ता हुआ देखता वह (व्यसनमाप्नुयात्) विपत्ति को प्राप्त होता
भावार्थ-जो स्वप्न में श्मशान या सुखी लकड़ी या लता और सूखा हुआ पेड़ और यज्ञ के खूटे पर चढ़ता हुआ देखता है वह विपत्ति को प्राप्त करता है ।। २४ ॥
त्रपु सीसायसं रज्जु नाणकं मक्षिका मधु।
यस्मिन् स्वप्ने प्रयच्छन्ति मरणं तस्य ध्रवं भवेत्॥२५॥ जो मनुष्य (स्वप्ने) स्वप्न में (त्रपु सीसायसं रज्जु) शीषा रांगा, जस्ता (नाणकं