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भद्रबाहु संहिता
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भावार्थ-कर्म के उदय से आने वाले दो प्रकार के स्वप्न है एक शुभ दूसरा अशुभ, पूर्वसंचित कर्म के उदय से आने वाले स्वप्न तीन प्रकार के ग्रहण करना चाहिये।३।।
भवान्तरेषु चाभ्यस्ता भावाः सफल निष्फलाः।
तान् प्रवक्ष्यामि तत्त्वेन शुभाशुभफलानिमान्॥४॥
जो (सफलनिष्फल:) इस फल व निष्फल (भावाः) भाव (भवान्तरेषु वाभ्यस्ता) भवान्तरों में अभ्यस्त है (तान्) उनके (शुभाशुभफलानिमान्) शुभा शुभ फलों को (तत्त्वेन) यथार्थ रूप से(प्रवक्ष्यामि) कहूंगा।
भावार्थ जो सफल और निष्फल भाव भवान्तरों में अभ्यस्त है उसके शुभाशुभ को जैसा का तैसा में भद्रबाहु स्वामी कहूंगा ॥४॥
जलं जलरुहं थान्यं सदलाम्भोज भाजनम्।
मणिमुक्ता प्रवालांश्च स्वप्ने पश्यन्ति श्लेष्मिकाः॥५॥ (श्लेष्मिका:) कप प्रकृति वाला मनुष्य (स्वप्ने) स्वप्न में (जलं) जल को (जलरुह) जल में उत्पन्न होने वाले पदार्थो को (धान्यं) धान्यों को (सदलाम्भोज) व पत्रसहित कमलों को, (भाजनम्) बर्तनों को (मणिं) मणि, (मुक्ता) मुक्ता, (प्रवालांश्च) प्रवाल (पश्यन्ति) देखता है।
___ भावार्थ-जो कफ प्रकृतिवाला मनुष्य है वो स्वप्न में जल को पानी में उत्पन्न होने वाली वस्तुओं को धान्यों को पत्रसहित कमलों को बर्तनों को मणि मुक्ता, प्रवालादि देखता है।। ५॥
रक्त पीतानि द्रव्याणि यानि पुष्टान्यग्निसम्भवान्।
तस्योपकरणं विन्द्यात् स्वप्नेपश्यन्ति पैत्तिकाः॥६॥ (रक्त पीतानि द्रव्याणि) लाल पीले पदार्थ (यानिपु ष्टान्यग्निसम्भवान्) जो अग्नि से पुष्ट पदार्थ हैं (तस्योपकरणं) व उनके उपकरण है (पैत्तिका पश्यन्तिस्वप्ने) उन सबको पित्त प्रकृति वाला देखता है (विन्द्यात्) ऐसा ज़ानो।
भावार्थ-जो पित्त प्रकृति वाला है वह स्वप्न में लाल पीले पदार्थ अग्नि से पुष्ट पदार्थ व उनके उपकरण देखता है।६।।