________________
भद्रबाहु संहिता |
भावार्थ-कपास, तिल, उड़द, घी, खाने के मसाले और धान्य महंगे होते है, और योग क्षेम की हानि होती है॥२७॥
चन्द्रस्य दक्षिणे पार्वे भार्गवो वा विशेषतः। उत्तरांस्तारकान् प्राप्य तदा विधादिदं फलम्।॥२८॥
हामन्यानि पुष्कधि द्वीकाते चामरस्तथा।
कार्पास तिल माषाश्च सर्पिश्चैवार्घते तदा॥२९॥ यदि (भार्गवो) शुक्र (चन्द्रस्य) चन्द्र के (दक्षिणे पार्वे) दक्षिण भाग में (वा विशेषतः) और विशेषकर (उत्तरांस्तारकान् प्राप्य) उत्तर से उत्तर द्वार का सेवन करे (तदा) तब (इदं फलम् विन्द्याद्) इस प्रकार का फल जानो। (महाधान्यानि पुष्पाणि) महाधान्य और पुष्य (हीयन्ते चामरस्तथा) केशर आदि पदार्थों की हानि होती है अर्थात् महंगे होते (कर्पास तिल माषाश्च) कपास, तेल, उड़द और (सार्पिश्चैवार्घते तदा) घी आदि की वृद्धि होती है, अत: ये पदार्थ सस्ते होते हैं।
भावार्थ-यदि शुक्र चन्द्रके दक्षिण भागमें और विशेषकर उत्तरसे उत्तरद्वार का सेवन करे तब इस प्रकार का फल होता, महाधान्य पुष्प, केशरआदि और घी, आदि की वृद्धि होती है। अत: ये पदार्थ सस्ते होते हैं॥२८-२९॥
चित्राया दक्षिणेपाि शिखरीनाम तारका।
तयेन्दुर्यदि दृश्येत तदा बीजं न वापयेत् ॥ ३० ॥ (चित्राया दक्षिणे पर्श्वि) चित्रा नक्षत्र के दक्षिण भाग में (शिखरीनाम तारका) शिखरी नामका तारा है (तयेन्दुर्यदि दृश्येत) उसमें यदि चन्द्रमा दिखलाई पड़े (तदा) तो (बीजं न वापयेद्) बीजों का वपन नहीं करना चाहिये।
भावार्थ-चित्रा नक्षत्र के दक्षिण भाग में शिखरी नामक तारिका है उस शिखरी तारिका में चन्द्रमा दिखे तो बीजों का वपन नहीं करना चाहिये ।। ३०॥
गवास्त्रेण हिरण्येन सुवर्ण माणि मोक्तिकैः।
महष्यिजादिभिर्वस्त्रैर्धान्यं क्रीत्वा निवापयेत् ॥ ३१॥ उक्त प्रकार की स्थिति में (गवास्त्रेण हिरण्येन) गाय, अस्त्र, चाँदी