________________
६७७
पञ्चविंशतितमोऽध्यायः
पश्चिमे स्यात्) पश्चिम में हो तो दस आढ़क प्रमाण महंगा और (दक्षिणेतु षडाढकम्) दक्षिण में हो तो छह आढ़क प्रमाण महँगा होता है।
भावार्थ-यदि उक्त ग्रह स्निग्ध हो दक्षिण और उत्तर होकर गमन करे तो धान्य पाँच द्रोण महँगा होता है। वही ग्रह पश्चिम में हो तो दश आढ़क प्रमाण महंगा होता है, और दक्षिण में हो तो छह आढ़क प्रमाण महँगा रहता है।। १७॥
उत्तरेण तु रोहिण्यां चतुष्कं कुम्भ मुच्यते।
दशकं प्रसङ्गतो विन्द्यात् दक्षिणेन चतुर्दशम्॥१८॥ (उत्तरेण तु रोहिण्या) उत्तर में रोहिणी हो तो (चतुष्कं कुम्भ मुच्यते) चतुष्क कुम्भ कहा जाता है (दशकं प्रसङ्गतो विन्द्यात्) इससे दस आढ़क प्रमाण धान्य महंगा होता है।
भावार्थ-उत्तर में रोहिणी हो तो चतुष्कुम्भ कहा जाता है, इससे दस आढ़क प्रमाण धान्य महंगा और वहीं दक्षिण में हो तो चौदह आढ़क प्रमाण धान्य महंगा होता है॥१८॥
नक्षत्रस्य यदा गच्छेद् दक्षिणं शुक्र चन्द्रमा:।
सुवर्ण रजतं रत्नं कल्याणं प्रियतां मिथः ।। १९॥ (यदा) जब (शुक्र चन्द्रमाः) शुक्र और चन्द्रमा (दक्षिणं) दक्षिण से होकर (नक्षत्रस्य गच्छेद्) कृत्तिका विध रोहिणी की ओर जावे तो (सुवर्ण रजतं रत्न) सुवर्ण, चाँदी, रत्न (कल्याणं प्रियतां मिथ:) और धान्य महँगे होंगे।।
भावार्थ-जब शुक्र और चन्द्रमा दक्षिण में होकर कृत्तिका बिध रोहिणी की ओर गमन करे तो सुवर्ण, चाँदी, रत्न और धान्य महंगे होंगे॥१९॥
धान्यं यत्र प्रियं विन्द्याद् गावो नात्यर्थ दोहिनः ।
उत्तरेण यदा यान्ति नैतानि चिनुयात् तदा॥२०॥ (यदा) जब उक्त ग्रह (उत्तरेण यान्ति) उत्तर में गमन करे (तदा) तो (नैतानि चिनुयात्) इतने प्रकार से (धान्यं यत्र प्रियं विन्द्याद्) वहाँ धान्य प्रिय होता है, ऐसा जानो (गावो नात्यर्थदोहिन:) और गायें दोहने के लिये प्राप्त नहीं होती है।