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योविंशतितमोऽध्यायः
नेपाल, मरु, कच्छ, सूरत, मद्रास, पंजाब, कश्मीर, कुलूत, पुरुषान्द और उशीनर प्रदेश में सात महीनों तक रोग व्याप्त रहता है। शुक्लपक्ष में ग्रहों द्वारा चन्द्रशृज के छिन्न होना अधिक अशुभ नहीं होता है।
यदि बुध द्वारा चन्द्रमा का भेदन होता हो तो मगध, मथुरा और वेणा नदी के किनारे बसे हुए देशों को पीड़ा होती है। केतु द्वारा चन्द्रमा पीड़ित होता हो तो अमंगल, व्याधि, दुर्भिक्ष और शस्त्र से आजीविका करनेवालों का विनाश होता है। चोरों को अनेक प्रकार के कष्ट सहन करने पड़ते हैं। राहु या केतु से ग्रस्त चन्द्रमाके ऊपर उल्का गिरे तो अशान्ति रहती है। यदि भस्मयुक्त रूखा, अरुणवर्ण, किरणहीन, श्यामवर्ण, कम्पायमान चन्द्रमा दिखलाई दे तो क्षुधा, संग्राम, रोगोत्पत्ति, चोरभय और शस्त्रभय आदि होते हैं। कुमुद्, मृणाल और हार के समान शुभ्रवर्ण होकर चन्द्रमा नियमानुसार प्रतिदिन घटता-बढ़ता है तो सुभिक्ष, शान्ति और सुवृष्टि होती है। प्रजा आनन्द के साथ रहती है तथा सन्तापों का विनाश होकर पूर्णतया शान्ति छा जाती है।
द्वादश राशियों के अनुसार चन्द्रफल मेष राशि में चन्द्रमा के रहने से सभी धान्य महँगे; वृष में चन्द्रमा के होने से चने तेज, मनुष्यों की मृत्यु और चोरभय; मिथुन में चन्द्रमा के रहने से बीज बोने में सफलता, उत्तम धान्य की उत्पत्ति कर्क में चन्द्रमा के रहने से वर्षा; सिंह में रहने से धान्य का भाव महंगा; कन्या में रहने से खण्डवृष्टि, सभी धान्य सस्ते, तुला में चन्द्रमा के रहने से थोड़ी वर्षा, देशभंग
और मार्गभय, वृश्चिक में चन्द्रमा के रहने से मध्यम वर्षा, ग्राम नाश, उपद्रव, उत्तम धान्य की उत्पत्ति; धनुराशि में चन्द्रमा के रहने से उत्तम वर्षा, सुभिक्ष और शान्ति; मकर राशि में चन्द्रमा के रहने,धान्यनाश, फसल में नाना प्रकार के रोग, मूसों-टिड्डी आदि का भय, कुम्भराशि में चन्द्रमा के रहन से अल्प वर्षा, घान्य का भाव तेज, प्रजा में भय एवं मीन राशि में चन्द्रमा के रहने से सुख-सम्पत्ति और सभी प्रकार के अनाज सस्ते होते हैं। वैशाख या ज्येष्ठ में चन्द्रमा का उदय उत्तर की ओर हो तो सभी प्रकार के धान्य सस्ते होते हैं। मेघ का उदय एवं वर्षण उत्तम होता
ज्येष्ठ मास की शुक्लपक्ष की प्रतिपदा को सूर्यास्त के समय ही चन्द्रमा दिखलाई पड़े तो वर्ष पर्यन्त सुभिक्ष रहता है। यदि चन्द्रमा का शृङ्ग उत्तर की ओर