________________
भद्रबाहु संहिता
६५२
है, उस देश की जय होती है। यदि पदशृङ्ग दक्षिण और उत्तर में फैला हुआ हो तो भूकम्प, महामारी आदि फल उत्पन्न होते हैं। कृषि के लिए उक्त प्रकार का चन्द्रमा अच्छा नहीं माना गया है। जिस चन्द्रमा का शृङ्ग नीचे को मुख किये हुए हो उसे आवर्तित शृङ्ग कहते हैं, इससे मवेशी को कष्ट होता है। घास की उत्पत्ति कम होती है तथा हरे चारे का भी अभाव रहता है। यदि चन्द्रमण्डल के चारों
ओर अखण्डित गोलाकार रेखा दिखलाई दे तो 'कुण्ड' नामक शृङ्ग होता है। इस प्रकारके शृङ्ग से देश में अशान्ति फैलती है तथा नाना प्रकार के उपद्रव होते हैं। यदि चन्द्रमा का शृङ्ग उत्तर दिशा की ओर कुछ ऊँचा हो तो धान्य की वृद्धि होती है, वर्षा भी उत्तम होती है। दक्षिण की ओर शृङ्ग के कुछ ऊंचे रहने से वर्षा का अभाव, धान्य की कमी एवं नाना तरह की बीमारियाँ फैलती है। एक शृङ्गवाला, नीचे को मुखवाला, भृत्रहीन अथवा सम्पूर्ण नये प्रकार का चन्द्रमा देखने से देखने वालों में से किसी की मृत्यु होता है। वैयक्तिक दृष्टि से भी उक्त प्रकार के चक्रशृङ्गों का देखना अनिष्टकर माना जाता है। यदि आकार से छोटा चन्द्रमा दिखलाई पड़े तो दुर्भिक्ष, मृत्यु, रोग आदि अनिष्ट फल घटते हैं तथा बड़ा चन्द्रमा दिखलाई पड़े तो सुभिक्ष होता है। मध्यम आकार के चन्द्रमा के उदय होने से प्राणियों को क्षुधा की वेदना सहन करनी पड़ती है। राजाओं, प्रशासकों एवं अन्य अधिकारियों में अनेक प्रकार के उपद्रव होने से संघर्ष होता रहता है। देश में अशान्ति होती है तथा नये-नये प्रकार के झगड़े उत्पन्न होते हैं। चन्द्रमा की आकृति विशाल हो तो धनिकों के यहाँ लक्ष्मी की वृद्धि, स्थूल हो तो सुभिक्ष, रमणीय हो तो उत्तम धान्य उपजते हैं। यदि चन्द्रमा के शृङ्ग को मंगल ग्रह ताडित करता हो तो कुत्सित राजनीतिज्ञों का विनाश, यथेष्ट वर्षा, पर फसल की उत्पत्ति का अभाव और शनिग्रह के द्वारा चन्द्रशृङ्ग आहत हो तो शस्त्रभय और क्षुधा का भय होता है। बुध द्वारा चन्द्रमा के शृङ्ग को आहत होनेपर अनावृष्टि, दुर्भिक्ष एवं अनेक प्रकार के संकट आते हैं। शुक्र द्वारा चन्द्रशृङ्ग का भेदन होने से छोटे दर्जे के शासन अधिकारियों में वैमनस्य, भ्रष्टाचार और अनीति का सामना करना पड़ता है। जब गुरु द्वारा चन्द्रशृङ्ग छिन्न होता है, तब किसी महान् नेता की मृत्यु या विश्व के किसी बड़े राजनीतिज्ञ की मृत्यु होती है।
कृष्ण पक्ष में चन्द्रशृङ्ग का ग्रहों द्वारा पीड़न हो तो मगध, यवन, पुलिन्द,