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| भद्रबाहु संहिता |
बहुवोदयको वाऽथ ततो भयप्रदो भवेत्।
मन्दधाते फलं मन्दं मध्यमं मध्यमेन तु ।। ३७॥ (बहुवोदयकोवाऽथ) बहुत उदय वाला चन्द्रमा (ततो भय प्रदो भवेत्) वहाँ पर भय उत्पन्न करता है (मन्दघाते फलं मन्द) मन्द घात हो तो फल भी मन्द होता है (मध्यमं मध्यमेन तु) मध्यम हो तो फल भी मध्यम होता है।
भावार्थ-घ्रि उदय वाला पाना अय को उत्पन्न करता है। मन्द उदय होता हुआ दिखे तो फल भी मन्द होता है। और मध्यम उदय होता हुआ दिखे तो फल भी मध्यम होता है।। ३७।।
चन्द्रमाः सर्वयातेन राष्ट्रराज्य भयङ्करः।
तथापि नागरान् हन्यात् या ग्रह समागमे॥३८॥ (चन्द्रमा:सर्व घातेन) जब चन्द्रमा सर्व घात करता है (राष्ट्रराज्ये भयङ्करः) राष्ट्र और राज्य के लिये भयंकर होता है (या ग्रह समागमे) या ग्रहों का समागम हुआ है तो (तथापि) तो भी (नागरान् हन्यात) नगरवासियों की हत्या करता है।
भावार्थ-जब चन्द्रमा सर्वघात करता है तो समझो राजा और राष्ट्र का घात करेगा, और अगर वही चन्द्रमा अन्य ग्रहों का समागम करता है। तो नगरवासियों को मारता है॥ ३८॥
नागराणां तदा भेदो विज्ञेयस्तु पराजयः ।
यायिनामपि विज्ञेयं यदा युद्धं परस्परम्॥ ३९॥ चन्द्रमा का अन्य ग्रह के साथ (युद्धं परस्परम्) जब परस्पर युद्ध होता है तो (नागराणां तथा भेदो विज्ञेयस्तु) नगरवासियों में भेद पड़ता है, ऐसा जानना चाहिये (यायिनामपि पराजयः विज्ञेयं) आने वाले आक्रमणकारी की भी पराजय होगी ऐसा जानना चाहिये।
भावार्थ-चन्द्रमा का अन्य ग्रह के साथ जब परस्पर युद्ध होता है। तो नगरवासियों में भेद पड़ता है, ऐसा जानना चाहिये आने वाले आक्रमणकारी की भी पराजय होगी ऐसाजानना चाहिए। ३९ ॥