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द्वाविंशतितमोऽध्यायः
सूर्य का संचार वर्णन सर्वग्रहेश्वरः सूर्यः प्रवासमुदयं प्रति।
तस्य चारं प्रवक्ष्यामि तान्नेबोधत तत्त्वतः॥१॥ (सर्वग्रहेश्वर: सूर्य:) सभी ग्रहों का स्वामी सूर्य है (तस्य प्रवासमुदयंप्रति) उसके प्रवास उदय (चार) चार को (प्रवक्ष्यामि) कहता हूँ (तन्निबोधत तत्त्वत:) उसको आप अच्छी तरह से जानो।
भावार्थ-अब मैं सभी ग्रहों के स्वामी सूर्य है उसके संचार उदय आदि का वर्णन करता हूँ आप इस तत्त्व को भी जानो।। १॥
सुरश्मी रजतप्रख्यः स्फटिकाभो महाद्युतिः।
उदये दृश्यते सूर्य: सुभिक्षं नृपतेर्हितम्॥२॥ यदि (सूर्यः) सूर्य (उदये) उदय होने पर (सुरश्मी) अच्छी किरणों वाला हो (रजत प्रख्य:) चाँदी के वर्ण का हो (स्फटिका भो महाद्युतिः) जिसकी आभा स्फटिक के समान होकर (दृश्यते) दिखे तो (सुभिक्ष) सुभिक्ष होगा और (नृपतेर्हितम्) राजा का हित करने वाला होता है।
भावार्थ-यदि सूर्य उदय होते समय चाँदी के वर्ण का हो तो अच्छी किरणों वाला हो, स्फटिक के समान आभा हो, जिसकी महाद्युति हो तो सुभिक्ष होगा। और राजा का हित होगा।॥ २॥
रक्तः शस्त्रप्रकोपाय भयाय च महार्घदः।
नृपाणामहितश्चापि स्थावराणां च कीर्तितः॥३॥ सूर्य उदय का (रक्तः) लाल वर्ण का हो तो (शस्त्र प्रकोपाय) शस्त्र प्रकोप (भयाय च महार्घदः) भय उत्पन्न करता है, और वस्तुओंका भाव तेज करता है।