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भद्रबाहु संहिता
तीन रंग का है, इसके उदय होने से दिशा का कोई नियम नहीं है। इस प्रकार कुल एक सौ एक केतु का वर्णन किया गया है। अवशेष ८९९ केतुओं का वर्णन निम्न प्रकार हैं
शुक्रतन्य नामक जो चौरासी केतु हैं, वे उत्तर और ईशान दिशा में दिखलाई पड़ते हैं, ये बृहत् शुक्लवर्ण, तारकाकार, चिकने और तीव्र फल युक्त होते हैं। शनि के पुत्र साठ केतु हैं, ये कान्तिमान, दो शिखा वाले और कनक संज्ञक हैं, इनके उदय होने से अतिकष्ट होता है। चोटीहीन, चिकने, शुक्लवर्ण, एक तारे के समान, दक्षिण दिशा के आश्रित पैंसठ विकच नामक केतु, बृहस्पति के पुत्र हैं। इनका उदय होने से पृथ्वी में लोग पापी हो जाते हैं। जो केतु साफ दिखलाई नहीं देते, सूक्ष्म, दीर्थ, शुक्ला , आनश्चित दिशा वाले तस्कर संज्ञक हैं। ये बुध के पुत्र कहलाते हैं। इनकी संख्या ५१ हैं और ये पाप फल वाले हैं। रक्त या अग्नि के समान जिनका रंग है, जिनकी तीन शिखाएँ हैं, तारे के समान हैं, इनकी गिनती साठ है। ये उत्तर दिशा में स्थित हैं तथा कौंकुम नामक मंगल के पुत्र हैं, ये सभी पापफल देने वाले हैं। तामसधीस नामक पैंतीस केतु, जो राहु के पुत्र हैं तथा चन्द्रसूर्य गत होकर दिखलाई देते हैं। इनका फल अत्यन्त शुभ होता है। जिनका शरीर ज्वाला की माला से युक्त हो रहा है, ऐसे एक सौ बीस केतु अग्निविश्वरूप होते हैं। इनका फल बनते हुए कार्यों को बिगाड़ना, कष्ट पहुँचाना आदि हैं। श्यामवर्ण, चमर के समान व्याप्त चिराग वाले और पवन से उत्पन्न केतुओं की संख्या सतत्तर है। इनके उदय होने से भय, आतंक और सप का प्रसार होता है। तारापुंज के समान आकार वाले प्रजापति युक्त आठ केतु हैं, इनका नाम गयक है। इनके उदय होने से क्रान्ति का प्रसार होता है। विश्व में एक नया परिवर्तन दिखलाई पड़ता है। चौकोर आकार वाले ब्रह्मसन्तान नामक जो केतु हैं, उनकी संख्या दो सौ चार है। इन केतुओं का फल वर्षाभाव और अन्नाभाव उत्पन्न करता है। लताके गुच्छे के समान जिनका आकार है, ऐसे बत्तीस केक नामक जो केतु हैं वे वरुण के पुत्र हैं। इनके उदय होने से जलाभाव, जलजन्तुओं को कष्ट एवं जल से आजीविका करने वाले कष्ट प्राप्त करते हैं। कबन्ध के समान आकार वाले छियानबे कबन्ध नामक केतु हैं, ये कालयुक्त कहे गये हैं। ये अत्यन्त भयङ्कर, दुःखदायी और कुरूप