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भद्रबाहु महिना
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राशिका रहता है, उस वर्ष बिजली का भय रहता है। सैकड़ों व्यक्तियों की मृत्यु बिजली के गिरने से होती है। अन्न की कमी रहने से प्रजा को कष्ट होता है। अन्नमें दूना-तिगुना लाभ होता है। एवं वर्ष तक दुर्भिक्ष रहता है, तेरहवें महीने में सुभिक्ष होता है। देश में गृहकलह तथा प्रत्येक परिवार में अशान्ति बनी रहती है। यह मीन राशि का राहु बंगाल, उड़ीसा, उत्तरीय बिहार, आसाम को छोड़कर अवशेष सभी प्रदेशों के लिए दुर्भिक्ष कारक होता है। अन्नकी कमी अधिक रहती है, जिससे प्रजा को भूखमरी का कष्ट तो सहन करना ही पड़ता है साथ ही आपस में संघर्ष
और लूट-पाट होने के कारण अशान्ति रहती है। मीन राशि के राहु के साथ शनि भी हो तो निश्चयत: भारत को दुर्भिक्ष का सामना करना पड़ता है। दाने-दाने के लिए मुँहताज होना पड़ता है। जो अन्न का संग्रह करके रखते हैं, उन्हें भी कष्ट उठाना पड़ता है। कुम्भ राशि में राहु हो तो सन, सूत, कपास, जूट आदि के संचय में लाभ रहता है। राहु के साथ मंगल हो तो फिर जूट के व्यापार में तिगुना-चौगुना लाभ होता है। व्यापारिक सम्बन्ध भी सभी लोगों के बढ़ते जाते हैं। कपास, रुई, सूत, वस्त्र, जूट सन, पाट तथा पाटादि से बनी वस्तुओं के मूल्य में महँगी आती है। कुम्भराशि में राहु और मंगल के आरम्भ होते ही छ: महीनों तक उक्त वस्तुओं का संग्रह करना चाहिए। सातवें महीने में बेच देने से लाभ रहता है। कुम्भ राशि में राहु में वर्षा साधारण हो है, फसल भी मध्यम होती है तथा धान्य के व्यापार में भी लाभ होता है। खाद्यान्नों की कमी राजस्थान, बम्बई, गुजरात, मध्यप्रदेश एवं उड़ीसा में होती है। बंगाल में भी खाद्यान्नों की कमी आती है, पर दुष्काल की स्थिति नहीं आने पाती। पंजाब, बिहार और मध्य भारत में उत्तम फसल उपजती है। भारत में कुम्भ राशि का राहु खण्डवृष्टि भी करता है। शनि के साथ राहु कुम्भ राशि में स्थित रहे तो प्रजा के लिए अत्यन्त कष्टकारक हो जाता है। दुर्भिक्ष के साथ खून-खराबियाँ भी कराता है। यह संघर्ष और युद्ध का कारण होता है। विदेशोंसे सम्पर्क भी बिगड़ जाता है, सन्धियों का महत्व समाप्त हो जाता है। जापान और बर्मा में खाद्यान्न की कमी नहीं रहती है। चीन के साथ उक्त राहु की स्थिति में भारत का मैत्री सम्बन्ध दृढ़ होता है। मकर राशि में राहु के रहने से सूत, कपास, रुई, वस्त्र, जूट, सन, पाट आदि का संग्रह तीन महीनों तक करना चाहिए। चौथे महीने में उक्त वस्तुएँ बेचने से तिगुना लाभ होता है। ऊनी, रेशमी और सूती