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विंशतितमोऽध्यायः
भावार्थ-जब प्रातःकाल का चन्द्रमा सुवर्ण वर्ण का हो तो समझो भय होगा, विशेषत: मन्त्री को भय उत्पन्न होगा ।। ४४॥
मध्याहे तु यदा चन्द्रो गृह्यते कनकप्रभः।
क्षत्रियाणां नृपाणां च तदा भयमुपस्थितम्॥४५।। (यदा चन्द्रोमध्याहे) जब चन्द्रमा मध्याह्न में (कनकप्रभः गृह्यते) सुवर्ण वर्ण का दिखे (तु) तो (तदा) तब (क्षत्रियाणां नृपाणां) क्षत्रियों के लिये व राजा के लिये (भयमुपस्थितम्) भय उत्पन्न होगा।
भावार्थ-जब चन्द्रमा मध्याह्न में सुवर्ण वर्ण का दिखे तो क्षत्रियों के लिये और राजाओं के लिये भय उपस्थित होगा ।। ४५॥
यदा मध्यनिशायां तु राहुणां गृह्यते शशी।
भयं तदा विजानीयात् वैश्यानां समुपस्थितम्॥४६॥ (यदा) जब (मध्यनिशायां) मध्यरात्रि में (राहुणां गृह्यते शशी) राहु के द्वारा चन्द्रमा ग्रहण किया जाता है (तु) तो (तदा) तब (वैश्यानां भयं) वैश्यों के लिये (भयं) भय (समुपस्थितम्) उपस्थित होगा (विजानीयात) ऐसा समझना चाहिए।
भावार्थ-जब मध्यरात्रि में राहु चन्द्रमा को ग्रहण करे तो वैश्यों को भय उपस्थित होगा।। ४६।।
नीचावलम्बी सोमस्तु यदा गृह्येत राहुणा।
सूर्पाकारं तदाऽऽनः मरुकच्छं च पीडयेत् ।। ४७॥ (नीचावलम्बीसोमस्तु यदा) जब नीच राशिस्थ चन्द्रमा (राहुणां गृह्येत) को राहु ग्रहण करे (तदा) तब (सूर्पाकारं) सूर्पाकार (अऽनत) आनत (मरुकच्छं च पीडयेत्) मरुभूमि, कच्छ प्रदेश आदि को पीड़ा देता है।
भावार्थ-जब नीचस्थ राहु चन्द्रमा को ग्रहण करता है, तो सूर्पाकार आनर्त मरु, कच्छ आदि प्रदेशों को पीडा देता है। ४७ ।।
अल्पचन्द्रं च द्वीपाश्च म्लेच्छा: पूर्वापरा द्विजाः। दीक्षिताः क्षत्रियामात्याः शूद्रा: पीडामवाप्नुयुः॥४८॥
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