________________
भद्रबाहु संहिता
( यतः प्रबाध्यते वेषः ) चन्द्रमा परिवेष से युक्त होता है ( ततो ) तब ( ग्रहा गमम् विन्द्याद्) उसी प्रकार समझो ग्रहों का आगमन होने वाला है (यतो वा मुच्यते वेषः ) जब परिवेष छूटता है तो (ततोश्चन्द्रोविमुच्यते ) समझो चन्द्रमा भी छूट जाता
है |
भावार्थ – अगर चन्द्रमा परिवेष से युक्त हो तो समझो ग्रहों का आगमन होने वाला है और परिवेष छूटता है, तो समझो ग्रह से चन्द्र मुक्त हो रहा है ॥ ४१ ॥ गृहीतो विष्यते चन्द्रो वेष मावेव विष्यते । यदा तदा विजानीयात् षण्मासाद् ग्रहणं पुनः ॥ ४२ ॥
५८०
( यदा) जब ( चन्द्रो ) चन्द्र (वेष मावेव) परिवेष से युक्त (विष्यते ) होता है ( गृहीतो विष्यते ) ग्रहण करता है ( तदा) तब (पुनः) पुन ( षण्मासाद्गहणं) छह महीने में ग्रहण होता है (विजानीयात्) ऐसा समझना चाहिये ।
भावार्थ-जब चन्द्र परिवेष से युक्त हो तो ग्रहण होगा पुनः छह महीने में चन्द्र ग्रहण होगा ।। ४२ ।।
प्रत्युद्गच्छति आदित्यं यदा गृह्येत भयं तदा विजानीयात् ब्राह्मणानां
चन्द्रमाः । विशेषतः ॥ ४३ ॥
( यदा) जब ( आदित्यं प्रत्यगच्छति ) सूर्य की ओर जाता हुआ (चन्द्रमाः गृह्येत ) चन्द्रमा ग्रहण करता है तो ( तदा) तब ( भयं विजानीयात्) भय को समझना चाहिये (विशेषत: ब्राह्मणानां ) विशेषत: ब्राह्मणों को भय होगा ।
भावार्थ - जब सूर्य की ओर जाता हुआ चन्द्रमा ग्रहण करे तो समझो भय उत्पन्न होगा और विशेष कर ब्राह्मणों को भय उत्पन्न करेगा, समझो ॥ ४३ ॥
प्रातरा सेविते चन्द्रोदृश्यते कनकप्रभः । मात्यानांविशेषतः ॥ ४४ ॥
भयं तदा
विजानीयाद्
(प्रातरा. सेवितेचन्द्रो) जब प्रातः काल का चन्द्रमा ( कनक प्रभः दृश्यते) कनक प्रभारूप दिखे तो ( तदा) तब ( भयं विजानीयाद्) भय होगा ऐसा समझो अमात्यानां विशेषतः ) विशेष कर आमात्यों को भय होगा ।
|