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| भद्रबाहु संहिता
भावार्थ-जब चन्द्रमा पर सिंह के, मेष के व ऊँट के आकार में परिवेष शुक्ल पक्ष की अष्टमी को हो तो समझो ग्रहों का आगमन होने वाला है।। २०॥
श्वेतके सरसङ्काशे रक्त पीतोऽष्टमो यदा।
यदा चन्द्रः प्रदृश्येत तदा ब्रूयात् ग्रहागमः ॥२१॥ (यदा) जब (चन्द्र) चन्द के ऊपर (अष्टमों) अष्टमी को (श्वेतकेसरसङ्काशे) श्वेत वर्ण, केशर वर्ण व (रक्त पीतोप्रश्येत) लाल, पीला दिखे तो (तदा) तब (ग्रहागमः ब्रूयात्) ग्र)का आगमन कहना चाहिये।
भावार्थ-अब चन्द्र के ऊपर अष्टमी को सफेद वर्ण व केशर वर्ण, लाल वर्ण पीला वर्ण परिवेष दिखे तो कहो की ग्रहों का आगमन होने वाला है॥२१॥
उत्तरतो दिशः श्वेतः पूर्वतो रक्त केसर:: दक्षिणतोऽथ पीतामः प्रतीच्या कृष्ण केसरः॥२२॥ तदागच्छन् गृहीतोऽपि क्षिप्रं चन्द्रः प्रमुच्यते।
परिवेषो दिनं चन्द्रे विमर्देत विमुञ्चति ॥२३॥ (उत्तरोदिश: श्वेत:) उत्तर की दिशा सफेद (पूर्वतोरक्तकेसर:) पूर्व की केशर वर्ण की (दक्षिणतोऽथ पीताभ:) अथ दक्षिण की पीली आभा (प्रीताच्यां कृष्णकेशर:)
और पश्चिम की आभा काली केशर के समान रंग की हो (तदा) तब राहु के द्वारा (चन्द्रः) चन्द्रमा (गृहीतोऽपि) ग्रहण करने पर भी (क्षिप्रं) शीघ्र ही (प्रमुच्यते) छोड़ दिया जाता है (चन्द्रे) चन्द्रमा में (दिन) दिन का (परिवेषो) परिवेष होने पर (विमर्दैतविमुञ्चति) राहु द्वारा विमर्दित होने पर शीघ्र छोड़ा जाता है।
भावार्थ-उत्तर की दिशा सफेद पूर्व की लाल केशर, दक्षिण की पीली, पश्चिम की काली केशर हो और राहु के द्वारा चन्द्रमा का ग्रहण करने पर भी शीघ्र छोड़ दिया जाता है, चन्द्रमा में दिन का परिवेष होने पर विमर्दित होने पर शीघ्र छोड़ा जाता है।। २२-२३॥
द्वितीयायां यदा चन्द्रः श्वेतवर्णः प्रकाशते।
उद्गच्छमानः सोमो वा तदा गृह्येत राहुणा ॥२४॥ (यदा) जब (चन्द्रः) चन्द्रमा (द्वितीयायां) द्वितीया में (श्वेतवर्ण:) श्वेत वर्ण