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| भद्रबाहु संहिता |
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एतान्येव तु लिङ्गानि भयं कुर्युरपर्वणि।
वर्षासु वर्षदानिस्युभद्रबाहुवचो यथा॥१४॥ (एतान्येव लिमानि) इतने प्रकार के चिह्नों के (भयं कुर्युरपर्वणि) भिन्न काल में भय करता है (वर्षासु वर्षदानिस्यु) जन्तु में करने वाले होते हैं (भा गावचो यथा) ऐसा भद्रबाहु स्वामी का वचन है।
___भावार्थ—इतने प्रकार के चिह्न अपर्व पूर्णिमां और अमावस्या से भिन्न काल में भय उत्पन्न करते है ऐसा भद्रबाहु स्वामी का वचन है।। १४ ।।
शुक्लपक्षे द्वितीयायां सोमशृङ्गं तदाप्रभम् ।
स्फुटिताग्रं द्विधा वाऽपि विद्याद् राहोस्तदाऽऽगमम्॥१५॥ (यदा) जब (शुक्लपक्षेद्वितीयायां) शुक्ल पक्ष की द्वितीया में (सोम शृंग) शुभ हो (वाऽपि) व (स्फुटिताग्रं द्विधा) टूट कर दो टुकड़े हो जाये तो (राहुस्तदाऽऽगमम् विद्याद्) समझो राहु का आगमन होने वाला है।
___ भावार्थ-जब शुक्ल पक्ष की द्वितीया में सोम शृंग शुभ हो व टुकड़े होकर गिरे तो समझो राहु का आगमन होने वाला है।। १५॥
चन्द्रस्य चोत्तरा कोटी वे शृङ्गे दृश्यते यदा।
धूम्रो विवर्णो ज्वलितस्तदाराहोर्बुवागमः ॥१६॥ (यदा) जब (चन्द्रस्य चोत्तरो कोटी) चन्द्र की उत्तर कोटी में (द्वे शृंगे दृश्यते) दो शृंग दिखलाई पड़े (धूम्रो विवर्णो ज्वलितस्तदा) धूम्र वर्ण का हो, विवर्ण हो, जलता हुआ दिखे तो (तदा) तब समझो (राहो वागम:) राहु का निश्चय आगमन होगा।
भावार्थ-जब चन्द्र की उत्तर कोटी में दो शृंग दिखे और धूम्र वर्ण का हो विवर्ण हो जलता हुआ दिखाई पड़े तो समझो राहुका निश्चयही आगमन होगा ।। १६॥
उद्यास्तमने भूयो यदा यचोदयो रवी। इन्द्रो वा यदि दृश्येत तदा ज्ञेयो ग्रहागमः ॥१७॥