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एकोनविंशतितमोऽध्यायः
बढ़ते हैं। स्वाति नक्षत्रमें मंगलके रहने से अनावृष्टि, विशाखामें कपास और गेहूँकी उत्पत्ति कम तथा इन वस्तुओंका भाव महँगा होता है। अनुराधामें सुभिक्ष और पशुओंको पीड़ा, ज्येष्ठामें मंगल हो तो थोड़ा जल और रोगोंकी वृष्टि; मूल नक्षत्रमें मंगल हो तो ब्राह्मण और क्षत्रियोंको पीड़ा, तृण, और धान्यका भाव तेज; पूर्वाषाढ़ा या उत्तराषाढ़ामें मंगल हो तो अच्छी वर्षा, पृथ्वी धन-धान्य से पूर्ण दूधकी वृद्धि; मधुर पदार्थों की उन्नति; श्रवणमें धान्यकी साधारण उत्पत्ति, जलकी वर्षा, उड़द, मूंग आदि दाल वाले अनाजों की कमी तथा इनके भावमें तेजी; धनिष्ठामं मंगल के होनेसे देशकी खूब समृद्धि, सभी पदार्थोंका भाव सस्ता, देशका आर्थिक विकास, धन-जनकी वृद्धि, पूर्व और पश्चिमके सभी राज्योंमें सुभिक्ष, उत्तरके राज्योंमें एक महीने के लिए अर्थसंकट, दक्षिणमें सुखशान्ति, कला-कौशलका विकास, मवेशियोंकी वृद्धि और सभी प्रकार से जनता को सुख; शतभिषामें मंगलके हानेसे कीट, पतंग, टिड्डी, मूषक आदिका अधिक प्रकोप, धान्यकी अच्छी उत्पत्ति; पूर्वाभाद्रपदमें मंगल के होनेसे तिल, वस्त्र, सुपारी और नारियल के भाव तेज होते हैं, दक्षिणभारतमें अनाजका भाव महँगा होता है; उत्तराभाद्रपदमें मंगल के होने से सुभिक्ष, वर्षाकी कमी और नाना प्रकारके देशवासियोंको कष्ट एवं रेवती नक्षत्रमें मंगल के होनेसे धान्यकी अच्छी उत्पत्ति, सुख, सुभिक्ष, यथेष्ट वर्षा, ऊन और कपासकी अच्छी उपज होती है। रेवती नक्षत्रका मंगल काश्मीर, हिमाचल एवं अन्य पहाड़ी प्रदेशोंके निवासियोंके लिए उत्तम होता है।
___ मंगलका किसी भी राशि पर वक्री होना तथा शनि और मंगलका एक ही राशि पर वक्री होना अत्यन्त अशुभ कारक होता है। जिस राशिपर उक्त ग्रह वक्री होते हैं उस राशिवाले पदार्थों का भाव महंगा होता है तथा उन वस्तुओंकी कमी भी हो जाती है।
इति श्रीपंचम श्रुत केवली दिगम्बराचार्य भद्रबाहु. स्वामी विरचित भद्रबाहु संहिता का मंगल ग्रहका संचार व फल का वर्णन करने वाला उन्नीसवें अध्यायका हिन्दीभाषानुभाव करने वाली क्षेमोदय टीका समाप्त।
(इति एकोनविंशतितमोध्यायः समाप्तः)