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भद्रबाहु संहिता
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भावार्थ-आका गुरु यासित हो तो शस्त्रघात होगा, आश्लेषा का होने पर विषाद भय होगा और हस्त, पुनर्वसु का हो तो थोड़ी वर्षा होती है और बहुत ही चोरों का भय होता है॥३६॥
वायव्ये वायवो दृष्टा रोग्दं वाजिनां भयम्।
अनुराधानुधाते च स्त्रीसिद्धिश्च प्रहीयते॥ ३७॥ (वायव्ये वायवो दृष्टा) स्वाति नक्षत्र में स्थित गुरु घातित दिखे तो वायव्य दिशा में (रोगदं वाजिनां भयम्) रोग का भय, घोड़ों का भय होगा, (अनुराधानुघाते च) और उसी प्रकार अनुराधा के घातित होने पर (स्त्रीसिद्धिश्च प्रहीयते) स्त्रीसिद्धि में कमी आती हैं।
भावार्थ-स्वाति नक्षत्र में स्थित गुरु के घातित होने पर वायव्य दिशामें घोड़ों को रोग होगा, भय होगा, अनुराधा में होने पर स्त्रीसिद्धि में कमी आयगी ।। ३७।।
तथा मूलाभिघातेन दुष्यन्ते मण्डलानि च।
वायव्यस्याभिघातेन पीड्यन्ते धनिनो नराः॥ ३८॥ (तथा) उसी प्रकार (मूलाभिघातेन) मूलनक्षत्र के घातित होने पर (मण्डलानि च दुष्यन्ते) प्रदेशों को कष्ट होता है (वायवस्याभिघातेन) विशाखा नक्षत्र में घातित होने पर (धनिनो नरा: पीड्यन्ते) धनिका मनुष्य पीड़ित होते हैं।
भावार्थ-उसी प्रकार मूलके घातित होने पर प्रदेशों को कष्ट होता है, और विशाखा के होने पर धनवान लोग पीडित होते हैं।। ३८ ।।
वारुणे जलजं तोयं फलं पुष्पं च शुष्यति।
अकारान्नाविकांस्तोयं पीड़येद्रेवती हता ।। ३९ ।। (वारुणे जलजं तोयं) शतभिषा के घातित होने पर कमल, जल, (फलं पुष्पं च शुष्यति) फल और पुष्प सूख जाते है (अकारनाविकांस्तोयं) उत्तराभाद्रपद के घातित होनेपर नाविक और जलजन्तुओं का घात होता है व (रेवती पीडये हता) रेवती के घातित होने पर पीडा होती है।
भावार्थ- शतभिषा के घातित होने पर कमल, जल, फल, पुष्प, सूख