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सप्तदशोऽध्यायः
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गुरु, पुष्य के कहे गये हैं और भी (रोहिण्यास्तथाश्लेषा) रोहिणी, आर्द्रा, आश्लेषा (हस्त: स्वाति: पुनर्वसु) हस्त, स्वाति, पुनर्वसु में गुरु के रहने पर प्रजा दुःखी होती
भावार्थ—इतने संवत्सर जो कहे गये हैं वो गुरु पुष्य के हैं, आगे रोहिणी आर्द्रा, आश्लेषा, हस्त, स्वाति और पुनर्वसु इनमें गुरु के होने पर प्रजा दुःखी होती
अभिजिच्चानुराधा च मूलोवासव वारुणाः।
रेवती भरणी चैव विज्ञेयानि बृहस्पतेः ।। ३४॥ (अभिजिच्चानुराधा च) अभिजित्, अनुराधा और (मूलो वासव वारुण:) मूल, धनिष्ठा, शतभिषा (रेवती भरणी चैव) रेवती और भरणी ये सब नक्षत्र (बृहस्पते: विज्ञेयानि) गुरु के हैं और शुभ फल देने वाले हैं।
भावार्थ-अभिजित, अनुराधा, मूल, धनिष्ठा, शतभिषा, रेवती, भरणी ये सब नक्षत्र गुरु के है और शुभ फल देते हैं।। ३४ ।।
कृत्तिकायां गतो नित्यमारोहण प्रमर्दने।
रोहिपयास्त्वभिघातेन प्रजाः सर्वाः सुदुःखिताः॥ ३५।। (कृत्तिकायांगतो नित्यं) नित्य कृत्तिका नक्षत्र में जाकर (आरोहण प्रमर्दने) आरोहण करे व मर्दन करें और (रोहिण्यास्त्वभिघातेन) रोहिणी नक्षत्र में घात करे तो (प्रजा: सर्वा: सुदुःखिता) सारी प्रजा अच्छी तरह से दुःखित होती है।
भावार्थ-कृत्तिका नक्षत्रमें नित्य ही जाकर आरोहण प्रमर्दन करे व रोहिणी नक्षत्रमें घात करे तो सारी प्रजा दुःखी होती है।। ३५ ।।।
शस्त्रघातस्तथाऽऽीयामाश्लेषायां विषाद् भयम्।
मन्द हस्त पुनर्वसोस्तोयं चौराश्च दारुणाः॥३६॥ (शस्त्रयातस्तथाऽऽH) आर्द्रा के घातित होने पर शस्त्र घात होगा, (यामाश्लेषायां विषाद्भयम्) आश्लेषामें होने पर विषाद् भय होने पर मन्द (स्तोयं) वर्षा होती है (चौराञ्च दारुणा:) चोर भय बहुत होता है।