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सप्तदशोऽध्यायः
वृहस्पति संचार वर्णन वर्णं गतिं च संस्थानं मार्गमस्तमनोदयौ।
वक्रं फलं प्रवक्ष्यामि गौतमस्य निबोधत॥१॥ वृहस्पति के (वणं गतिं च) वर्ण और गति को (संस्थानं मार्गमस्तमनोदयौ) संस्थानको व अस्त और उदय को (वक्र) वक्र को (फलं) उसके फलको (गौतमस्य निबोधत) गौतमस्वामी के द्वारा कहा गया था वैसा ही मैं (प्रवक्ष्यामि) कहूँगा।
भावार्थ-वृहस्पति का रंग, गति संस्थान और अस्त-उदय, वक्रता व उसके फल में जैसा गौतम स्वामी ने कहा था वैसा ही कहूँगा॥१॥
मेचकः कपिलः श्यामः पीतः मण्डल-नीलवान्।
रक्तश्च धूम्रवर्णश्च न प्रशस्तोऽङ्गिरास्तदा ॥२॥
(अगिर: बृहस्पतिका (मेनल कपिल: श्यामः) मेचक, कपिल, श्याम (पीत: मण्डल-नीलवान्) पीला और नीला (रक्तश्च) लाल और (धूम्रवर्णश्च) धूम्रवर्ण का होना (न प्रशस्तो) प्रशस्त नहीं है।
भावार्थ-गुरु का मेचक, कपिल, पीलामण्डल नीला व लाल धूम्रवर्ण का होना शुभ नहीं है।। २॥
मेचकश्चन्मृतं सर्व वसुपाण्डुर्विनाशयेत्।
पीतो व्याधि भयं शिष्टे धूम्राभः सृजते जलम्॥३॥ यदि गुरु (मेचकश्चेन्मृतं सर्व) का मण्डल मेचक वर्ण का हो तो मृत्यु लाता है (वसुपाण्डुर्विनाशयेत्} और सब प्रकार से पाण्डुवर्ण का हो तो विनाश करता है (पीतो व्याधि भयं शिष्टे) पीला हो तो व्याधियाँ उत्पन्न करता है। (धूम्राभ: सृजतेजलम्) धूम्रवर्ण का हो तो जल वर्षा होती है।
भावार्थ यदि गुरु का मण्डल मेचक हो तो मृत्यु लाता है, पाण्डुवर्ण का
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