________________
भद्रबाहु संहिता ।
से शनि राज्यपाल, राष्ट्रपति, मुख्यमन्त्री एवं प्रधानमन्त्रीके लिए हानिकारक होता है। देशके अन्य वर्गोंके व्यक्तियोंके लिए कल्याण करनेवाला होता है। धनिष्ठा नक्षत्र में विचरण करनेवाला शनि धनिकों, श्रीमन्तों और ऊंचे दर्जेके व्यापारियोंके लिए हानि पहुंचाता है। इन लोगों को व्यापार में घाटा होता है। शतभिषा और पूर्वाभाद्रपद में शनि के रहने से पुण्यजीवी व्यक्तियों को विघ्न होता है। उक्त नक्षत्रके शन्ति में बड़े-बड़े व्यापारियों को अच्छा लाभ होता है। उत्तराभाद्रापद में शनि के रहने से फसल का नाश, दुर्भिक्ष, जनता को कष्ट, शस्त्रभय, अग्निभय एवं देशके सभी प्रदेशों में अशान्ति होती है। रेवती नक्षत्र में शनि के विचरण करने से फसल का जमाव, अल्गार्वा, रोगों की भरपार जनता में विद्वेष-ईर्ष्या एवं नागरिकों में असहयोगकी भावना उत्पन्न होती है। राजाओं में विरोध उत्पन्न होता है। गुरुके विशाखा नक्षत्र में रहनेपर शनि यदि कृत्तिका नक्षत्र में स्थित हो तो प्रजा को अत्यन्त पीड़ा, दुर्भिक्ष और नागरिकों में अनेक वर्ण का शनि देश को कष्ट देता है, देशके विकास में विघ्न करता है। श्वतेवर्ण का शनि ब्राह्मणों को भय, पीतवर्ण का वैश्यों को, रक्तवर्ण का क्षत्रियों को और कृष्णवर्ण का शनि शूद्रों को भारतके सभी प्रदेशों में शान्ति, धन-धान्यकी वृद्धि एवं देश का सर्वाङ्गीण विकास होता है।
इति श्री पंचम श्रुतकेवली दिगम्बराचार्य भद्रबाहु स्वामी विरचित भद्रबाहु संहिता का शनि ग्रह संचारनामा अध्याय का वर्णन करने वाला सोहलवाँ अध्याय का हिन्दी भाषानुवाद करने वाली क्षेमोदय टीका समाप्त।
(इति षोडशोऽध्यायः समाप्तः)