________________
५०९
षोडशोऽध्यायः
है। धनुराशि में शनि के अस्त होने से स्त्री-बच्चों को कष्ट, उत्तम वर्षा, उत्तम फसल, उत्तम व्यापार और जनसाधारण में सब प्रकारसे शान्ति व्याप्त रहती है। मकरराशि में शनि के अस्त होने से सुख, प्रचण्ड पवन, अच्छी वर्षा, अच्छी फसल, व्यापार में कमी, राजनैतिक स्थिति में परिवर्तन एवं पशुधनकी वृद्धि होती है। कुछ राशि में शनि के अस्त होने से शीतप्रकोप, पशुओंकी हानि एवं मध्यम फसल होती है। मीनराशि में शनि के उत्पन्न होने से अधर्म का प्रचार, फसल का अभाव एवं प्रजा को कष्ट होता है।
नक्षत्रानुसार शनिफल-श्रवण, स्वाति, हस्त, आर्द्रा, भरणी और पूर्वाफाल्गुनी नगर में शनि शियत हो तो पृथ्वी पर जलकी वर्षा होती है, सुभिक्ष, समर्घता-वस्तुओंके भाव में समता और प्रजा का विकास होता है। उक्त नक्षत्रों का शनि मनोहर वर्ण का होने से अधिक शान्ति देता है तथा पूर्वीय प्रदेशोंके निवासियों को अर्थलाभ होता है। पश्चिम प्रदेशोंके नागरिकोंके लिए उक्त नक्षत्रों का शनि भयावह होता है। चोर, डाकुओं और गुण्डों का उपद्रव बढ़ जाता है। आश्लेषा, शतभिषा और ज्येष्ठा नक्षत्रों में स्थित शनि सुभिक्ष, सुमंगल और समयानुकूल वर्षा करता है। इन नक्षत्रों में शनि के स्थित रहने से वर्षा प्रचुर परिमाण में नहीं होती। समस्त देश में अल्प ही वृष्टि होती है। मूलनक्षत्र में शनि के विचरण करने से क्षुधाभय, शत्रुभय, अनावृष्टि, परस्पर संघर्ष, मतभेद, राजनैतिक उलटफेर, नेताओं में झगड़ा, व्यापारी वर्ग को कष्ट एवं स्त्रियों को व्याधि होती है। अश्विनी नक्षत्र में शनि के विचरण करने से अश्व, अश्वारोही, कवि, वैद्य और मन्त्रियोंको हानि उठानी पड़ती है। उक्त नक्षत्र का शनि बंगाल में सुभिक्ष, शान्ति, धन-धान्य की वृद्धि, जनता में उत्साह, विद्या का प्रचार एवं व्यापारकी उत्पत्ति करनेवाला है। आसाम और बिहारके लिए साधारणतः सुखदायी, अल्प वृष्टि कारक एवं नेताओं में मतभेद उत्पन्न करनेवाला, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश और बम्बई राज्यके लिए सुभिक्ष कारक, बाढ़के कारण जनता को साधारण कष्ट, आर्थिक विकास एवं धान्यकी उत्पत्ति का सूचक है। मद्रास, कोचीन, राजस्थान, हिमाचल, दिल्ली, पंजाब और विन्ध्यप्रदेशके लिए साधारण वृष्टि कारक, सुभिक्षोत्पपादक और आर्थिक विकास करनेवाला है। अवशेष प्रदेशके लिए सुखोत्पादक और सुभिक्ष कारक है। अश्विनी