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हुए भी इतने कम समय में उपर्युक्त महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों के प्रकाशन करवाने में सफलता प्राप्त की है। सभी ग्रन्थ एक से बढ़कर एक है और सभी ज्ञानोपार्जन के लिये लाभकारी सिद्ध हुए है। ऐसे सभी आचावी, सासुओं, विद्वानों के विवाद हमें समय-समय पर प्राप्त होते रहे हैं। यह सभी सफलता परम पूज्य सभी आचार्यों व साधुओं के शुभाशीर्वाद के साथ-साथ परम पूज्य श्री 108 गणधराचार्य कुन्थुसागरजी महाराज व श्री 105 गणिनी आर्यिका विजयमती माताजी के विशेष शुभाशीर्वाद से ही हो सका है। इसके लिये हम सभी उनके कृतज्ञ हैं और उनके चरणों में नतमस्तक होकर शत शत बार नमोस्तु अर्पित करते हैं।
मुझे आशा ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास है कि पाठकगण ग्रन्थमाला समिति द्वारा प्रकाशित ग्रन्थों का स्वाध्याय करके पूर्ण ज्ञानोपार्जन कर रहे हैं और आगे भी इस ग्रन्थमाला से जिन-जिन महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों का प्रकाशन होगा, उनसे पूर्ण लाभ उठा सकेंगे और त्रुटियों के लिये क्षमा करेंगे।
शान्तिकुमार गंगवाल प्रकाशन संयोजक
जिनवाणी का माहात्म्य
जिनवाणी का एकाग्रचित होकर सेवन करने का फल भात्मा की उन्नति करना है। यह उन्नति तभी सम्भव है जबकि ससाहित्य को पढ़कर धर्म के मर्म को समझने की जिसमें जिज्ञासा या आकांक्षा हो। सम्यग्ज्ञान के महत्व को जिन्होंने समझा है, उन्होंने स्वाध्याय को अपना कर सद्-साहित्यों का अध्ययन किया है। वह अपनी आत्मा के निज स्वभाव में रत रहते हैं। ज्ञानाराधना एक तपश्चर्या है ।
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