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भद्रबाहु संहिता
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धान्यका भाव महंगा, जनतामें क्षोभ, आतंक एवं घृत और गुड़का भाव सस्ता होता है। शुक्रवार को शुक्र अस्त होकर शनिवारको उदय प्राप्त हो तो सुभिक्ष, शान्ति, आर्थिक विकास, पशु सम्पत्तिका विकास, समय पर वर्षा, कला-कौशलकी वृद्धि एवं चैत्रके महीनेमें बीमारी पड़ती है। श्रावणमें मंगलवारको शुक्रास्त हो और इसी महीनेमें शनिवारको उदय हो तो बीमारी पड़ती है। श्रावणमें मंगलवारको शुक्रास्त हो और इसी महीनेमें शनिवारको उदय हो तो जनतामें परस्पर संघर्ष, नेताओंमें मतभेद, फसलकी क्षति, खून-खराबी जहाँ-तहाँ उपद्रव एवं वर्षा भी साधारण होती है। भाद्रपद मासमें गुरुवारको शुक्र अस्त हो और गुरुवारको ही शुक्रका उदय अश्विन मासमें हो तो जनतामें संक्रामक रोग फैलते हैं। अश्विन मासमें शुक्र बुधवारको अस्त होकर सोमवारको उदयको प्राप्त हो तो सुभिक्ष, धन-धान्यकी वृद्धि, जनतामें साहस एवं कल-कारखानोंकी वृद्धि होती है। बिहार, बंगाल, आसाम, उत्कल आदि पूर्वीय प्रदेशों में वर्षा यथेष्ट होती है। दक्षिण भारतमें फसल अच्छी नहीं होती, खेतीमें अनेक प्रकार के रोग लग जाते हैं, जिससे उत्तम फसल नहीं होती। कार्तिक मासमें शुक्रास्त होकर पौषमें उदयको प्राप्त हो तो जनता को साधारण कष्ट में कठोर जाड़ा तथा पाला पड़ने के कारण फसल नष्ट हो जाती है। माघ मार्गशीर्षमें शुक्रका अस्त होना अशुभ सूचक है। पौषमासमें शुक्रास्त होना अच्छा होता है, धन-धान्यकी समृद्धि होती है। माघमासमें शुक्र अस्त होकर फाल्गुन में उदयको प्राप्त हो तो फसल आगामी वर्ष अच्छी नहीं होती। फाल्गुन और चैत्र मासमें शुक्रका अस्त होना मध्यम है। वैशाखमें शुक्रास्त होकर आषाढ़में उदय हो तो दुर्भिक्ष, महामारी एवं उथल-पुथल सारे देशमें रहती है। राजनैतिक उलट-फेर भी होते रहते हैं। ज्येष्ठ और आषाढ़के शुक्रका अस्त होना अनाजकी कमी का सूचक है।
इति श्रीपंचम श्रुत केवली दिगम्बराचार्य भद्रबाहु स्वामी विरचित भाद्रबाहु संहिता का ग्रहाचार नामा अध्याय का विशेष वर्णन करने वाला पन्द्रहवाँ अध्याय का हिन्दीभाषानुवाद करने वाली क्षेमोदय टीका समाप्त ।।
(इति पञ्चदशोऽध्यायः समाप्तः)