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पञ्चदशोऽध्यायः
भेदन शुरू गमन करे सो कर्म करने वाले व्यक्तियों को कष्ट होता है। इस नक्षत्रका भेदन शुभ ग्रहके साथ होनेसे शुभ फल और क्रूग्रहके साथ होने से अशुभ फल होता है । पूर्वाभाद्रपदका भेदन करनेसे जुआ खेलने वालों को कष्ट, उत्तराभाद्रपदका भेदन करनेसे फल- पुष्पोंकी वृद्धि और रेवतीका भेदन करने सेनाका विनाश होता है। अश्विनी नक्षत्रमें भेदन करने से शुक्र क्रूग्रहके साथ संयोग करे तो जनताको कष्ट और शुभग्रह का संयोग करे तो लाभ, सुभिक्ष और आनन्द की प्राप्ति होती है । भरणी नक्षत्रका भेदन करनेसे जनताको साधारण कष्ट होता है।
कृष्णपक्षकी चतुर्दशी अमावस्या, अष्टमी तिथिको शुक्रका उदय या अस्त हो तो पृथ्वीपर अत्यधिक जलकी वर्षा होती है। अनाजकी उत्पत्ति खूब होती है। यदि गुरु और शुक्र पूर्व - पश्चिममें परस्पर सातवीं राशिमें स्थित हों तो रोग और भयसे प्रजा पीड़ित होती है, वृष्टि नहीं होती । गुरु, बुध, मंगल और शनि ये ग्रह यदि शुक्रके आगे के मार्गमें चले तो वायुका प्रकोप, मनुष्योमें संघर्ष, अनीति और दुराचार की प्रवृत्ति, उल्कापात और विद्युत्पात जनता में कष्ट तथा अनेक प्रकार के रोगों की वृद्धि होती है। यदि शनि शुक्रसे आगे गमन करे तो जनताको कष्ट, वर्षाभाव और दुर्भिक्ष होता है। यदि मंगल शुक्रसे आगे गमन करता हो तो भी जनतामें विरोध, विवाद, शस्त्रभय, अग्निभय, चोरभय होनेसे नाना प्रकारके कष्ट सहन करने पड़ते हैं । जनतामें सभी प्रकारकी अशान्ति रहती है । शुक्रके आगे मार्गमें बृहस्पति गमन करता हो तो समस्त मधुर पदार्थ सस्ते होते हैं। शुक्रके उदय या अस्तकालमें शुक्र के आगे जब बुध रहता है तब वर्षा और रोग रहते हैं। पित्तसे उत्पन्न रोग तथा काच- कामलादि रोग उत्पन्न होते हैं। संन्यासी, अग्निहोत्री, वैद्य, नृत्यसे आजीविका करनेवाले, अश्व, गौ, वाहन, पीले वर्णके पदार्थ विनाशको प्राप्त होते हैं। जिस समय अग्निके समान शुक्रका वर्ण हो तब अग्निभय, रक्तवर्ण हो तो शस्त्रकोप, कञ्चनके समान वर्ण हो तो गौरवर्णके व्यक्तियोंको व्याधि उत्पन्न होती है। यदि शुक्र हरित और कपिल वर्ण हो तो दमा और खाँसीका रोग अधिक उत्पन्न होता है । भस्मके समान रूक्ष वर्णका शुक्र देशको सभी प्रकारकी विपत्ति देनेवाला होता है। स्वच्छ, स्निग्ध, मधुर और सुन्दर कान्ति वाला शुक्र सुभिक्ष, शान्ति, निरोगता आदि फलको देनेवाला है । शुक्रका अस्त रविवार को हो तथा उदय शनिवारको हो तो देशमें विनाश, संघर्ष, चेचक का विशेष प्रकोप, महामारी,