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पञ्चदशोऽध्यायः
कृत्तिकायां यदा शुक्रः विकृष्य प्रतिपद्यते।
ऐरावणपथे यद् वत् तद् वद् ब्रूयात् फलं तदा ॥९७॥ (कृत्तिकायां यदा शुक्र) कृत्तिका नक्षत्र का शुक्र जब (विकृष्य प्रतिपद्यते) विकृष्य दिखलाई पड़े तो समझो (ऐरावणपथे यद् वत्) ऐरावणपथ का जो फल कहा गया था (तद् वद् ब्रूयात् फलं तदा) उसी प्रकार इसका भी फल कहे।।
भावार्थ-कृत्तिका नक्षत्र में जब शुक्र विकृष्य दिखे तो समझो ऐरावण विथी को जो फल कहा था यहीं फल यहाँ पर समझना चाहिए।। ९७।।
रोहिणी शकटं शुक्रो यदा समभिरोहति। चक्रारूढाः प्रज्ञा ज्ञेया महद्भयं विनिर्दिशेत् ॥ ९८ ।। पाण्ड्य केरल चोला चेधाश्च करनाटकः।
चेरा विकल्पकाश्चैव पीयन्ते ताद्दशेन यत्॥९९॥ (यदा) जब (शुक्रो) शुक्र (रोहिणी) रोहिणी नक्षत्र में (शकटं समभिरोहति) शकट के आकार गमन करे तो (प्रजा चक्रारूढा: ज्ञेया) प्रजा चक्ररूढ के समान भ्रमण करेगी (महद्रयं विनिर्दिशेत्) महान् भय उत्पन्न होगा (पाण्ड्य) पाण्ड्य (केरल) केरल (चोलाश्च) चौल (चेद्याश्च) चेदि (करनाटकाः) कर्नाटक (चेरा विकल्पकाश्चैव) चेर, विदर्भ (पीड्यन्ते तादृशेनयत्) आदि देशों को पीड़ा होती है।
भावार्थ-जब शुक्र रोहिणी नक्षत्र में शकटाकार शुक्र गमन करे तो प्रजा चक्रारूढ रूप भ्रमण करेगी, महान् भय होगा। पाण्ड्य, केरल, चोल, चेदि कर्नाटक, चेर विदर्भ देशों में महान् पीड़ा होगी। ९९ ।।।
प्रदक्षिणं यदा याति तदाहिंसति स प्रजाः।
उपघातं बहुविधं वासन् कुरुते भूवि ।। १००॥ (प्रदक्षिणं यदा याति) जब शुक्र प्रदक्षिणी रुप गमन करे तो (तदा हिंसति स प्रजाः) तब वहाँ की प्रजा का नाश होता है (उपघातं बहुविधं) बहुत प्रकार से उपघात होगा (भुवि) पृथ्वी पर (वा सन् कुरुते) नाना प्रकार के उत्पात करता है।
भावार्थ-जब दक्षिण में शुक्र गमन करता है तो वहाँ की प्रजा का नाश होता है पृथ्वी पर उपधात, परघात आदि नाना प्रकार के उत्पात होता है।। १००॥