________________
भद्रबाहु संहिता
४२८
अनार्याः कच्छयौधेयाः सांदृष्टार्जुन नायकाः।
पीड्यन्ते तेषु देशेषु म्लेच्छों वै म्रियते नृपः॥ ३९ ।। (यदा) जब (चान्ये) अन्य (ग्रहा:) ग्रह (तत्रस्थं) वहाँ के (भार्गवं) शुक्र को (अभिगच्छन्ति) का घात करे तो (सौराष्ट्राः) सौराष्ट्र देश (सिन्धुसौवीरा:) सिन्धु देश, सौवीर देश, (मन्तिसाराश्च) अन्तिसार देश (साधवः) साधु जन (अनार्या:) अनार्यदेश, (कच्छयौधेयाः) कच्छ देश, यौधेय देश, (सांदृष्टार्जुन नायका:) न देशों से विरोध करना ठीक नहीं सन्धि कर लेनी चाहिये राजाओं को (तेषु) इन (देशेषु) देशों में (पीड्यन्ते) पीड़ा होती है (म्लेच्छो वै म्रियन्ते नृपः) तथा म्लेच्छ देश के राजा का मरण होता हैं।
भावार्थ-जब पंचम मण्डल में शुक्र अन्य ग्रहों के द्वारा अगर घात किया जाता है तो समझो सौराष्ट्र, सिन्धु, सौवीर, मतिसार (अन्तिसार देश) और साधुजन, अनार्य देश, कच्छ देश, योधैयदेश के साथ सन्धि कर लेनी चाहिये। इन देश के लोगों को पीड़ा होती है और म्लेच्छ देश के राजा का मरण होता है।। ३८-३९ ।।
यदा तु मण्डले षष्ठे कुर्यादस्तमथोदयम्।
शुक्रस्तदा प्रकुर्वीत भयानि तत्र क्षुद्भयम् ।। ४०॥ __(यदा) जब (षष्ठेमण्डले) छठे मण्डल में (शुक्र) शुक्र (अस्तमथोदयम्) अस्त या उदय (कुर्याद्) होता है (तु) तो (तदा) तब (तत्र) वहाँ पर (क्षुद्भयम् भयानि प्रकुर्वीत) शुद्र भयों को उत्पन्न करता है।
भावार्थ-जब छठे मण्डल में शुक्र उदय या अस्त होता हो तो शुद्र भय उत्पन्न करेगा॥४०॥
रसाः पाञ्चाल बाह्रीका गन्धाराश्च गवोलकाः। विदर्भाश्च दशार्णाश्च पीड्यन्ते नात्र संशयः॥४१॥ द्विगुणं धान्य मर्पणनोत्तरं वर्षयेत् तदा।
क्षतैः शस्त्रं च व्याधि च मूर्छयेत् तादृशेन यत् ।। ४२॥ (रसा: पाञ्चाल बाह्रीका) वत्स, पाञ्चाल, बाह्रीक, (गन्धाराश्च) गान्धार