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पञ्चदशोऽध्यायः
(सिद्धिमिच्छता) सिद्धि को चाहने वाले लोगों को चाहिये की वो (सर्वश्वेतं तदा धान्यं क्रेतव्यं) सब प्रकार के सफेद पदार्थ धान्यों को खरीद लेना चाहिये (तथा) तथा (चेमे देशा:) देशवासियों को व ( निर्ग्रन्थैः साधुवृत्तिभिः) साधुवृत्ति वाले निग्रन्थों को (त्याज्या) देश का त्याग कर देना चाहिये ।
भावार्थ- सुख की इच्छा करने वालों को चाहिये की वो सफेद पदार्थ व धान्यों को खरीदे, निर्ग्रन्थ साधु उस देश को छोड़कर अन्यत्र विहार करे ॥ ३४ ॥ स्त्रीराज्यं ताम्रकर्णाश्च कर्णाटा: कमनोत्कटाः । बाह्रीकाश्चविदर्भाश्च मत्स्य काशीसतस्कराः ॥ ३५ ॥ स्फीताश्च रामदेशाश्च सूरसेनास्तथैव च । जायन्ते वत्सराजाश्च परं यदि तथा रोगेभ्यश्चतुर्भागे
हताः ॥ ३६ ॥ भविष्यति ।
चान्येषु भद्रबाहुवचो यथा ॥ ३७ ॥
मरण
क्षुधा एषु देशेषु चान्येषु
( स्त्रीराज्यं ) स्त्री राज्य में (ताम्रकर्णाश्च) ताम्र कर्ण और ( कर्णाटा:) कर्नाटक (कमनोत्कटाः) आसाम (बाहीकाश्च) बाह्लीक (विदर्भाश्च) विदर्भ (मत्स्य) मत्स्य (काशी) काशी ( सतस्काराः) तस्कर, (स्फीताश्च) स्फीत (रामदेशाश्च) और रामदेश ( सूरसेनासस्तथैव च ) सौर सेन देश और ( वत्स राजाश्च) वत्स राजा आदि देशों में (यदि ) यदि ( परं तथाहता: जायन्ते) परं उपर्युक्त शुक्तहत होता है तो ( क्षुधा ) भूख, ( मरण) मरण (रोगेभ्यः) रोगों के द्वारा (एषुदेशेषु चान्येषु) इन देशों का (चतुर्भागे भविष्यति ) प्रजा चतुर्थ भाग कष्ट में (भविष्यति ) हो जायगी (भद्रबाहुवचो यथा ) ऐसा भद्रबाहु स्वामी का वचन है।
भावार्थ — स्त्रीराज्य, ताम्रकर्ण, कर्नाटक, कमनोत्कटा, बाह्लीक, विदर्भ, मत्स्य, काशी, तस्कर, स्फीत, रामदेश, सूरसेन, वत्सराज आदि राज्योंकी प्रजा कम से कम चौथाई भाग क्षुधा, मरण, रोगों के द्वारा कष्ट में हो जायगी ऐसा भद्रबाहु स्वामी का वचन है ।। ३५-३६-३७ ॥
यदा चान्येऽभिगच्छन्ति तन्त्रस्थं भार्गवं ग्रहाः । सौराष्ट्राः सिन्धुसौवीराः मन्तिसाराश्चसाधवः ॥ ३८ ॥