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पञ्चदशोऽध्यायः
भरण्यादीनि चत्वारि चतुर्नक्षत्रकाणि हि।
षदेव मण्डलानिस्युस्तेषां नामानि लक्षयेत्।। ७॥ (भरण्या दीनि चत्वारि) भरणी नक्षत्र से आदि लेकर चार-चार (चतुर्नक्षत्रकाणि हि) नक्षत्रों के (षडेवमण्डलानिस्युः) छ; मण्डल होते है (तेषां) उनके (नामानि लक्षयेत्) नाम अवगत करना चाहिये।
भावार्थ-भरणी नक्षत्र से लेकर चार-चार नक्षत्रों में छह-छह मण्डल होते हैं उनके नाम अवगत करना चाहिये।।७॥
सर्वभूतहितं रक्तं परुषं रोचनं तथा।
ऊवं चण्डं च तीक्ष्णं च निरुक्तानि निबोधत ॥८॥
(सर्वभूतहित) सम्पूर्ण प्राणियों के हित के लिये (रक्त) लाल (परुष) पुरुष (रोचन) दीप्तिमान् (ऊर्ध्वं) ऊपर (चण्ड) चण्ड (च) और (तीक्ष्णं च) तीक्ष्ण यह छह मण्डल (निरुक्तानि) कहे गये है (निबोधत) उसको जानना चाहिये।
भावार्थ-सब प्राणियों के हित के लिये लाल, कठोर, प्रकाशमान, ऊर्ध्व, चण्ड, तीक्ष्ण ये छह मण्डल है आचार्य श्री ने कहे है आप जानो।।८।।
चतुष्कं च चतुष्कञ्च पञ्चकं त्रिकमेव च।
पञ्चकं षट्कविज्ञेयो भरण्यादौ तु भार्गवः ॥ ९॥ (चतुष्कं च चतुष्कञ्च) भरणी से चार नक्षत्र, आर्द्रा से चार नक्षत्र (पञ्चक त्रिकमेव च) और मघा से पाँच नक्षत्र, स्वाति से तीन नक्षत्र (पञ्चकं) ज्येष्ठा से पाँच नक्षत्र (षट्कविज्ञेयो) धनिष्ठा से छहं नक्षत्र जानना चाहिये (भरण्यादौ तु भार्गवः) भरणी आदि से शुक्र के यह छह मण्डल है।
भावार्थ-भरणी से चार नक्षत्र लेना भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, यह प्रथम मण्डल हुआ, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य और आश्लेषा यह दूसरा मण्डल है मघा, पूर्वाफाल्गुनी उत्तराफाल्गुनी हस्त और चित्रा यह तीसरा मण्डल है, स्वाति, विशाखा और अनुराधा यह चतुर्थ मण्डल है। ज्येष्ठ मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा और श्रावण यह पाँचवा मण्डल है। धनिष्ठा, शतभिखा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद