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भद्रबाहु संहिता
भावार्थ — जब अर्धरात्रि में शुक्र संचार करता है तब वहाँ की प्रजा को मरण भय होता है अथवा भूमि कम्प होता है, लेकिन सूर्य की स्थिति में स्थित होना चाहिये शुक्र ॥३॥
दिवि मध्ये यदा दृश्येच्छुक्रः सूर्यपथास्थितः । कुर्याद्विशेषाद्वर्णसङ्करम् ॥ ४ ॥
सर्वभूतभयं
(दिविमध्ये यदाहश्येत् ) सूर्य की स्थिति में स्थित होकर (छुक्रः) शुक्र ( सूर्यपथास्थितः ) सूर्य पथ पर दिखे तो ( सर्वभूत भयंकुर्याद) सम्पूर्ण जीवों को भय करता है, उसमें भी (विशेषाद्वर्णसङ्करम् ) विशेष रीति से वर्ण संकरों को भय होता
है।
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भावार्थ-जब शुक्र सूर्य की स्थिति में स्थित होकर सूर्य पथ पर दिखे तो सब जीवों को भय होता है, विशेष प्रकार से वर्ण संकरों को ज्यादा भय होता
है ॥ ४॥
अकाले उदितः शुक्रः प्रस्थितो वा यदा भवेत् ।
तदा त्रिसांवत्सरिकं ग्रीष्मे वपेत्सरसु खा ॥ ५ ॥
( यदा) जब (शुक्रः) शुक्र (अकाले उदितः प्रस्थितो भवेत् ) अकालमें उदय या अस्त होता हुआ दिखे तो ( तदा ) तब (त्रिसांवत्सरिकं ) तीन वर्ष तक (ग्रीष्मे वपेत्सरसु वा ) ग्रीष्म व शरद ऋतु में महामारी होती है।
भावार्थ- जब शुक्र अकाल में उदय या अस्त होता हुआ दिखाई तो तीन वर्ष तक गर्मी व शरद् ऋतु में महामारी का भय होता है ॥ ५ ॥
गुरु भार्गव चन्द्राणां रश्मयस्तु यदा एकाहमपि दीप्यन्ते तदा विन्द्याद्भयं
हता: । खलु ॥ ६ ॥
( यदा) जब ( गुरु भार्गव चन्द्राणां रश्मयस्तु हताः ) गुरु शुक्र और चन्द्रमा की किरणें घातित होकर ( एकाहमपि दीप्यन्ते) एक दिन भी दीप्त होती है ( तदा ) तब ( खलु ) निश्चय से ( विन्द्याद्भयं ) भय समझो ।
भावार्थ — जब गुरु शुक्र चन्द्र की किरणें घातित करता हुआ एक दिन भी दीप्त दिखे तो निश्चय से भय होगा समझो ॥ ६ ॥
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