________________
| भद्रबाहु संहिता |
शयनासने परीक्षा ग्राममारी वदेत् ततः।।
सन्ध्यायां सुप्रदीप्तायां यदा सेनामुखा हयाः॥१५३।। (यदा हया) जब घोड़े (सन्ध्यायां) सांयकाल में (सुप्रीप्तायां सेनामुखा) सुदीप्त होता हुआ सेना के सम्मुख में हँसते है (ततः) वह (शयनासनेपरीक्षा) शयन आसन की परीक्षा के टाइम भी हँसते हो तो (ग्राममारी वदेत्) ग्राम में भारी रोग फैलेगा ऐसा कहते हैं।
भावार्थ-जब घोड़े सांयकाल में दीप्तिमान हुऐ सेना के सम्मुख हैंसते हो तो समझो ग्राम में भारी रोग फैलेगा। १५३॥
त्रासयन्तो विभेषन्तो घोरात् पादसमुद्धृताः।
दिवसं यदि वा रात्रिं हेषन्ति सहसा हयाः ॥१५४॥
यदि (हयाः) घोड़े (सहसा) सहज ही (दिवसं यदि वा रात्रि) दिन में व रात्रि में (हेषन्ति) हँसने लगे तो भय होगा, और (त्रासन्तो विभेषन्तो) दुःखित होता हुआ छुपकर (घोरात् पादसमुद्धृता) पाँव से मिट्टी उखाड़े तो भी भय होगा।
भावार्थ-जब घोड़े अकस्मात् सहज ही में दिन में रात्रि में हँसने लगे तो भय होगा, और दुःखित होकर छुपकर पाँवों से मिट्टी उखाड़े तो भी भय होगा ऐसा समझो॥ १५४।।
सन्ध्यायां सुप्रदीप्तायां तदा विन्द्यात् पराजयम्।
उन्मुखा रुदन्तो वा दीनं दीनं समन्ततः॥१५५॥ यदि घोड़े (सन्ध्यायां सुप्रदीप्तायां) सूर्यास्त के समय (उन्मुखा) ऊपर को मुँह करके (समन्तत:) चारों तरफ से (दीनं दीनं वा रुदन्तो) दीन होकर रोने लगे (तदा) तब (पराजयविन्द्यात् पराजय होगी ऐसा समझो।
भावार्थ-जब घोड़े सांयकाल में ऊपर को मुँह करके चारों तरफ से हीन-दीन होकर रोने लगे तो समझो राजा की पराजय होगी॥१५५ ।।
हया यत्र तदोत्पातं निर्दिशेद्राजमृत्यवे। विच्छिद्यमाना हेषन्ते यदा रूक्षस्वरं हयाः॥१५६ ॥