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चतुर्दशोऽध्यायः
दक्षिणमालो हष्टः चौरदूत भयङ्करः ।
अपरे तोय जीवानां वायव्ये हन्ति वै गदम्॥१३७ ।। यदि चन्द्रमा के (दक्षिणात्परतो दृष्ट:) दक्षिण तरफ लाल दिखे तो चोर भय होता है दूत को भय होता है, पूर्व की ओर दिखे तो महाभयंकर होता है (अपरेतोय जीवानां) पूर्व की ओर दिखने पर जल के जन्तुओं को कष्ट होता है (वायव्ये हन्ति वै गदम्) वायव्यमें हो तो रोग का नाश होता है।
भावार्थ-यदि चन्द्रमा उदय के समय दक्षिण की तरफ लाल हो तो चोर भय दूत को भय होता है, पूर्व की ओर हो तो जल के जीवों को भय होता है, वायव्य में हो तो रोग का नाश होता है।। १३७॥
__विवदत्सु च लिनेषु यानेषु प्रवदत्सु च।
वाहनेषु च हृष्टेषु विन्धाद्भयमुपस्थितम् ॥१३८॥ (विवदत्सु च लिङ्गेषु) शिव लिङ्ग में विवाह हो तो (यानेषु प्रवदत्सु च) सवारियों में वार्तालाप होने पर (वाहनेषु च हृष्टेषु) वाहनों में प्रशन्नता दिखने पर (भय उपस्थितम विन्धाद) भय उपस्थित होगा।
भावार्थ-शिवलिङ्गों में विवाह होने लगे, सवरियों में वार्तालाप करे वाहनों में प्रशन्नता दिखे तो महान भय उपस्थित होगा॥१३८॥
उध्वं वृषो यदा नर्देत् तदा स्याच्च भयङ्करः।
ककुदं चलते वापि तदाऽपि स भयङ्करः॥१३९ ।। (यदा) जब (वृषो) बैल (उर्ध्वं नर्देत्) ऊँचा मुँह करके शब्द करे तो (तदा) तब (भयङ्करस्याच्च) महान भयंकर होता है (वापि) और (ककुद) खंदा (चलते) चलायमान करे (तदाऽपि) तो भी (स भयङ्करः) वह भयंकर होता है।
भावार्थ-जब बैल ऊँचा मुँह करके शब्द करे तो भयंकर होता है, और अपना खंदा चलायमान करे तो भी भयंकर होता है ।। १३९ ।।
व्याधयः प्रबला पत्र माल्यगन्धं न वायते। आहूति पूर्ण कुम्भाश्च विनश्यन्ति भयं वदेत्॥१४०॥