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भद्रबाहु संहिता
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(यत्र देवा:) जहाँ पर देव (नर्तन) नाचते हो (जल्पन) बोलते हो (हासमुत्कीलन) हँसते हो, उत्कीलन करते हो (निमीलने) आँख झपकाते हो इस प्रकार की क्रिया (प्रकुर्वन्ति) करते हो तो (तत्र) वहाँ पर (महद्भयम् विन्द्यान्) महान भय उपस्थित होगा।
भातर्थ-जहाँ पर देन हैंगते हो, नाचते हो. आँख झपकाते हो, ऐसी क्रिया करते हो तो, वहाँ पर महान् भय होगा ऐसा समझो ॥ १०६॥
पिशाचा यत्र दृश्यन्ते देशेषु नगरेषु वा।
अन्यराजो भवेत्तत्र प्रजानां च महद्भयम्।। १०७॥ (यत्र) जहाँ (देशेषु नगरेषु वा) देश में व नगरों में (पिशाचा दृश्यन्ते) पिशाच दिखाई दे तो (तत्र) वहाँ पर (अन्य राजो भवेत) दूसरा राजा होता है। (प्रजानां च महद्भयम्) और प्रजा को महान् भय होता है।
भावार्थ-जिस देश में या नगरों में पिशाच दिखाई दे तो वहाँ पर राजा अन्य होगा, और प्रजाओं में महान् कष्ट होगा ।। १०७ ।।
भूमिर्यत्र नभो याति विंशति वसुधा जलम्।
छश्यन्ते वाऽम्बरे देवास्तदा राजवधो ध्रुवम्॥१०८॥ (यत्र) जहाँ पर (भूमि) पृथ्वी (नभो याति) आकाश में जाती हो (विंशति वसुधा जलम) व धरती में घुसती हुई दिखाई पड़े व (अम्बरे देवा: दृश्यन्ते) आकाश देव दिखाई दे तो (तदा) तब (ध्रुवम्) निश्चय से (राजवधो) राजा का वध होगा।
भावार्थ-जहाँ पर भूमि आकाश में जाती हुई दिखे व पाताल में जाती हुई दिखाई दे, और आकाश में देव दिखे तो समझो राजा का वध होगा ।। १०८॥
धूम ज्वालां रजो भस्म यदामुञ्चन्ति देवताः।
तदा तु म्रियते राजा मूलतस्तु जनक्षयः ।। १०९॥ (यदा) जब (देवता:) देवता, (धूमज्वाला रजोभस्म) धूआँ, ज्वाला, धूल, राख की (मुञ्चन्ति) वर्षा करे (तु) तो (तदा) तब (राजाम्रियते) राजा का मरण होता है (मूलतस्तु जनक्षयः) और मूलत: जनता का क्षय हो जाता है।