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इस प्रकार परम पूज्य आचार्यों व परम पूज्या गणिनी आर्यिका विजयमति माताजी के शुभाशीर्वाद के साथ-साथ परम पूज्य श्री 108 गणधराचार्य कुंथु सागर जी महाराज के शुभाशीर्वाद से हमने ग्रंथ प्रकाशन कार्य प्रारम्भ करवाकर इस विशाल ग्रंथ का प्रकाशन कार्य 3 माह की अल्पावधि में पूरा कराने में सफलता प्राप्त की है।
प्रकाशन कार्यों को बहुत ही सावधानीपूर्वक देखा गया है फिर भी इतने विशाल कार्य में त्रुटियों का रहना स्वाभाविक है मेरा स्वयं का अल्प ज्ञान है। अत: साधु वर्ग विद्वतजन व अन्य पाठकों से निवेदन है कि त्रुटियों के लिये क्षमा करें।
प्रस्तुत ग्रंथ में प्रकाशित चित्रों को बनवाने में श्री बाबूलालजी शर्मा ने मुझे बहुत सहयोग प्रदान किया है। अत: धन्यवाद देता हूँ।
ग्रंथमाला समिति के प्रकाशन कार्यों में सभी सहयोगी कार्यकर्ताओं का भी मैं बहुत-बहुत आभारी हूँ कि आप सभी ने समय-समय पर कार्य पूरा कराने में सहयोग प्रदान किया है। मेरे सुपुत्र श्री प्रदीप कुमार गंगवाल ने परम पूज्य श्री 108 गणधराचार्य कुंथु सागरजी महाराज के शुभाशीर्वाद से इस कार्य को पूरा कराने में कठिन परिश्रम किया है। अन्य सहयोगीगण सर्वश्री ब्र. मोती लाल हाड़ा, लल्लू लाल गोधा, रविकुमार गंगवाल, राजकुमार बोहरा, चेतन कुमार गोधा, रमेश चन्द जैन, राजीव छाबड़ा, श्रीमती कनकप्रभा हाड़ा, श्रीमती मेम देवी गंगवाल का समय-समय पर सहयोग मिलता रहा है। अत: सभी धन्यवाद के पात्र हैं। जिन-जिन विद्वानों ने पुफ रीडिंग का कार्य समय पर पूरा कराने में हमें सहयोग प्रदान किया है उनको भी धन्यवाद देता हूँ।
परम पूज्य श्री 108 गणधराचार्य कुंथु सागर जी महाराज के मंगलमय शुभाशीर्वाद से हमें (प्रतापगढ़) राजस्थान में इन्द्रध्वज महामण्डल पूजा विधान के पूजा शुभावसर पर शामिल होने का सौभाग्य प्राप्त हो सका है। और इसी शुभावसर पर ग्रंथमाला समिति द्वारा प्रकाशित भद्रबाहु संहिता एवं सामुद्रिक शास्त्र करलखन की प्रथम प्रति परम पूज्य गणधराचार्य कुंथु सागर जी महाराज के कर-कमलों में भेंटकर नमोस्तु करता हुआ प्रार्थना करता हूँ कि आप इस ग्रंथ राज का विमोचन करके हमें लाभान्वित करने की कृपा करें।
गुरु उपासक
प्रकाशन संयोजक शान्ति कुमार गंगवाल (बी.काम)