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संघस्थ माताजी श्री 105 उपगणिनी अभिनव चन्दन बाला आर्यिका क्षेम श्री माताजी के नाम से की है।
माताजी की दीक्षा हमारे जयपुर (राजस्थान) में गणधराचार्य श्री के द्वारा वर्ष 1992 में हुई थी इसलिये हमें और भी प्रसन्नता है कि इतने विशाल ग्रंथ की टीका आपके नाम से की गई है।
प्रकाशित ग्रंथ के बारे में और भी विशेष जानकारी प्रदान करने हेतु आदरणीय प्रोफेसर डा० अक्षय कुमार जी जैन, इन्दौर ने लेख लिखने की जो कृपा की है। अतः उन्हें भी धन्यवाद देता हूँ ।
ग्रंथ प्रकाशन में प्रकाशन खर्चे के भुगतान हेतु आर्थिक सहयोग की आवश्यकता होती है क्योंकि ग्रंथमाला समिति के पास स्थायी जमा राशि नहीं है। फिर भी प्रकाशन कार्य निरन्तर दातारों से समय-समय पर प्राप्त आर्थिक सहयोग के आधार से हम सकें। अतः प्रस्तुत ग्रंथ के प्रकाशन खर्चों में जिन-जिन दातारों ने हमें सहयोग प्रदान किया है उसकी सूची हमने ग्रंथ में प्रकाशित कर दी है और उनका आभार व्यक्त करते हुए धन्यवाद देते हैं।
ग्रंथ प्रकाशन कार्य बहुत ही कठिन कार्य होता है कितनी ही बाधाएँ इसमें आती है यह तो करने वाले व कराने वाले ही भली-भांति समझ सकते हैं। क्योकि कई हाथों से कार्य निकलता है। कार्य निर्विघ्न व समय पर पूरा हो जाना यह बहुत बड़ी उपलब्धि होती है। लेकिन गुरु आशीर्वाद से सब कार्य आसान हो जाते हैं जिनको श्रद्धान होता है। प्रस्तुत ग्रंथ का कार्य निर्विघ्न रूप से शीघ्र पूरा हो जावें, इसके लिये हमने नववर्ष के शुभारम्भ में दिनांक 1/1/94 को श्री सम्मेद शिखर सिद्ध क्षेत्र पर विराजमान परम पूज्य निमित्त ज्ञान शिरोमणि आचार्य विमल सागर जी महाराज का मंगलमय शुभाशीर्वाद प्राप्त किया।
उपाध्याय श्री भरत सागर जी महाराज का शुभाशीर्वाद प्राप्त किया। हमारे जयपुर निवासियों के विशेष पुण्योदय से परम तपस्वी सिद्धान्त चक्रवर्ती श्री 108 आचार्य सन्मति सागर जी महाराज का व परम पूज्य श्री 105 गणिनी आर्यिका विजयमति माताजी के संघ का वर्ष 1994 का वर्षा योग करवाने का शुभावसर प्राप्त हुआ। हमने वर्षा योग में विभिन्न कार्यक्रमों का लाभ प्राप्त करते हुए इस ग्रंथ के शीघ्र ही निर्विघ्न रूप से प्रकाशनार्थ मंगलमय शुभाशीर्वाद प्राप्त किया।