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| चतुर्दशोऽध्यायः
चंद्रशृंगे यदा भौमो विकृतस्तिष्ठतेतराम्।
भृशं प्रजा विपद्यन्ते कुरवः पार्थिवाश्चलाः॥ ९१ ।। (यदा) जब (चंद्रशृंगे) चन्द्रमा के शृंग पर (भौमो विकृतस्तिष्ठतेतराम्) विकृत । मंगल ठहरता हो तो (प्रजा शं विपद्यन्ते) प्रजा को अत्यन्त कष्ट होता है (पार्थिवाश्चला: कुरवः) राजा व पुरोहित कष्ट में रहते हैं।
भावार्थ-जब चन्द्रमा के विपरीत शृंग पर मंगल ठहरे तो प्रजा को बहुत दुःख होता है और राजा का व उसका पुरोहित कष्ट में पड़ता है।। ९१॥
शनैश्चरो यदा सौम्यशृङ्गे पर्युपतिष्ठति।
तदा वृष्टि भयं घोरं दुर्भिक्षं प्रकरोति च ॥१२॥ (यदा) जब (सौम्य शृङ्गे) चन्द्रमा के भंग पर (शनैश्चरो) शनि (पर्युपतिष्ठति) रहता है तो (तदा) तब (धोरं वृष्टिभयं) घोर वृष्टि का भय (च) और (दुर्भिक्षं प्रकरोति) दुर्भिक्ष को करेगा।
भावार्थ-जब चन्द्रमा के भंग पर शनि हो तो वर्षा का भय उपस्थित होगा, दुर्भिक्ष को करने वाला होगा ।। ९२ ।।
भिनत्ति सोमं मध्येन ग्रहेष्वन्यतमोयदा।
तदा राजभयं विन्द्यात् प्रजा क्षोभं च दारुणम्॥ ९३ ।। जब (सोम) चन्द्रमा को (मध्येन) मध्यसे (ग्रहेष्चन्यतमो भिनत्ति) कोई ग्रह भेदन करता है तो (तदा) तब (राज भयं विन्द्यात्) राजभय उत्पन्न होगा, (च) और (प्रचा क्षोभं दारुणम्) प्रजा को क्षोभ होगा।
भावार्थ-जब चन्द्रमा को मध्यसे कोई भी ग्रह भेदन करे तो समझो राजभय होगा, और प्रजा को क्षोभ का कारण बनेगा।।९३॥
राहुणा गृह्यते चन्द्रो यस्य नक्षत्रजन्मनि ।
रोगं मृत्युभयं वाऽपि तस्य कुर्यान्न संशयः॥ ९४॥ (यस्य) जिसके (जन्मनि) जन्म (नक्षत्र) नक्षत्रपर (राहुणा चन्द्रो गृह्यते) राहु और चन्द्र को ग्रहण करता है (तस्य) उसको (रोगं मृत्युभयं वाऽपि) रोग होगा मृत्यु भय होगा। उसमें कोई (कुर्यान्न संशय) सन्देह नहीं करना चाहिये।